N.E.P. 2020, क्या बदलाव लाएगी शिक्षा प्रणाली में ?
आखिरकार 34 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद देश को बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति मिल ही गई और बिना पूरी जानकारी, पूरा ड्राफ्ट बिना पढ़े/ समझे उसकी आलोचना भी शुरू हो गई उसकी खामियां भी गिनाई जाने लगीं। भारत जैसे लोकतंत्र में यह पूर्वाग्रह ग्रसित हठधर्मिता एक आवश्यक प्रक्रिया/ प्रणाली के रूप में स्थापित हो गई है, सरकार कुछ भी कहे, करे बिना सोचे समझे बिना पूरी जानकारी उसकी आलोचना विपक्ष का प्रथम और परम कर्तव्य हो गया है। अब तो अपवाद स्वरूप भी ऐसा एकाध मामला दिखाई सुनाई नहीं देता की सरकार के किसी भी निर्णय पर विपक्ष ने सहमति जताते हुए एक रचनात्मक विपक्ष की अपनी भूमिका की अदायगी करने का कर्तव्य निर्वहन किया हो।
बुधवार को केंद्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनी मंजूरी दे दी। जाने-माने शिक्षाविदों के बीच ये चर्चा आम है कि आने वाले दिनों में शिक्षा नीति लागू होने के बाद कौन से बदलाव देखने को मिलेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ स्कूली शिक्षा को नहीं बल्कि आने वाले समय में उच्च शिक्षा यानी हायर एजुकेशन पर भी अपना असर डालेगी।
यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति ऐतिहासिक है वह इस लिहाज से कि जितना राय मशविरा इसे लाने से पहले किया गया है वह पहले कभी नहीं हुआ,अलग-अलग राज्य सरकारों से भी इस पर राय मांगी गई थी और उन्होंने भी अपने राज्य के अनुसार इस नीति में सुझाव दिए जानकारों के मुताबिक इससे ज्यादा समावेशी राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो ही नहीं सकती थी। आलीचकों के इस सवाल पर कि क्या यह शिक्षा नीति निजीकरण को बढ़ावा देगी और बेहतर यूनिवर्सिटी को और बेहतर और खराब यूनिवर्सिटी को खत्म करने का प्रारूप लाएगी, इस पर सरकार का तर्क है कि यह नीति प्रतियोगिता को बढ़ावा देगी ताकि छोटी यूनिवर्सिटी या राज्य स्तर के शिक्षण संस्थान बड़े संस्थानों के साथ मुकाबला कर पाएं। निजीकरण की बात कहीं से भी सही नहीं है। हां, विदेशी यूनिवर्सिटी हिंदुस्तान में जरूर आएगी और उससे भारत का शिक्षा स्तर ग्लोबल होगा।
नई शिक्षा नीति में कम से कम पांचवी तक और उसके बाद संभव हो तो आठवीं या उसके भी बाद तक मातृ भाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई की बात की गई है, और ये बिल्कुल सही कदम है छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में जल्दी सीखते हैं और अपने शिक्षकों से भी उनका संवाद बेहतर ढंग से होता है। इसके लिए सरकार का प्रयास है कि पाठ्य पुस्तकें भी ऐसी लाई जाएं जिनमें पठन सामग्री द्विभाषी हो। त्रिभाषा फॉर्मूला का पहले भी काफी विरोध हुआ है जिस कारण सरकार का रूख इस पर थोड़ा नरम है मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि सभी संवैधानिक प्रावधानों, लोगों एवं क्षेत्रों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए तीन भाषा वाला फॉर्मूला लागू किया जाएगा। राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा दिया जाएगा। तीन भाषा वाले फॉर्मूले में अधिक लचीलापन होगा और किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्य, क्षेत्र और स्वाभाविक रूप से स्वयं बच्चे ही तय करेंगे लेकिन उन तीनों में से कम से कम दो भारतीय भाषाएं होनी चाहिए।
नई शिक्षा नीति से एक बहुत बड़ा बदलाव यह होगा कि सभी बोर्ड एक हो जाएंगे,बच्चों में हीन भावना नहीं रहेगी, फासला मिट जाएगा और एक मान्यता रहेगी। इसके अलावा 10+2 प्रणाली में बदलाव करके 5+3+3+4 प्रणाली लाई जा जाएगी जो एक बहुत बड़ा बदलाव साबित होगा, बच्चे की नींव तैयार करने में यह प्रणाली बहुत कारगर होगी। एनईपी 2020 में डिग्री कोर्स 4 वर्षीय करने और बीएड कोर्स भी चार वर्षीय करने के बारे में कहा गया है जो निश्चित तौर पर शिक्षा में गुणवत्ता लाने हेतु उच्च प्रशिक्षित शिक्षक तैयार करने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
शिक्षा के लिए बजट बढ़ाने की बहु प्रतीक्षित माँग भी सरकार ने मानी है और जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किये जाने की बात कही है जो पहले के 4.6 प्रतिशत से बहुत अधिक है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कोई भी भाषा किसी पर थोपी नहीं गई है और त्रिभाषा फार्मूले को लेकर लचीला रूख प्रस्तावित किया गया है। इसरो के पूर्व प्रमुख ने कहा कि पांचवीं कक्षा तक निर्देश का माध्यम स्थनीय भाषा अपनाना शिक्षा के प्रारंभिक चरण में महत्वपूर्ण है क्योंकि बच्चा अपनी मातृभाषा और स्थानीय भाषा में चीजों के प्रति अच्छे से समझा बनाता है और अपनी रचनात्मकता व्यक्त करता है।
देश की नई शिक्षा नीति वर्ष 2021-2022 से लागू होगी. उम्मीद की जा रही है कि इसके लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों की मनमानी में भी कमी आएगी और जल्द ही प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच की दीवार गिर जाएगी. इस नई नीति के तहत अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा विभाग किया जाएगा जो कि आरएसएस की बहुत पुरानी माँग थी इसी के साथ डॉक्टर निशंक अब देश के शिक्षा मंत्री कहलाएंगे।
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