अकबर के नौ रत्नों में से एक तानसेन को पराजित करने वाले बैजू बावरा जी की जन्मस्थली है चंदेरी

 


विंध्याचल पर्वत श्रेणियों के बीच में बसा ऐतिहासिक शहर चंदेरी प्राचीन काल से ही मशहूर रहा है, चाहे वह द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और राजा शिशुपाल की वजह से रहा हो, ऐतिहासिक इमारतों तथा चंदेरी की धरोहरों की वजह से रहा हो, यहाँ की प्रसिद्द चंदेरी साड़ियों, या यहाँ होने वाले खिन्नी, सीताफल या आम की वजह से। 
आज हम आपको बताने जा रहे हैं 16 वीं शताब्दी के महान संगीत सूर्य पंडित श्री बैजू बावरा जी के बारे में। इनका पूरा नाम बैजनाथ प्रसाद मिश्र था। कहा जाता है कि जब वे राग छेड़ते थे, तो बारिश होने लगती थी, और पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाता था। यह राग था मालफोस। पंडित श्री बैजू बावरा जी का जन्म शरद पूर्णिमा की रात सन् 1542 में चंदेरी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके गुरु हरिदास जी थे। 

अकबर के नौ रत्नों में से एक तानसेन को पराजित किया था बैजू बावरा जी ने 
सम्राट अकबर संगीत कला को बहुत पसंद करते थे। उनके दरबार के नौ रत्नों में से एक महान संगीतज्ञ तानसेन उनके दिल के बेहद करीब थे। एक बार सम्राट अकबर ने संगीत की प्रतियोगिता रखी, और ऐलान किया कि जो भी इस प्रतियोगिता में आखिरी तक बना रहेगा, वह इस महल में गाने का हकदार रहेगा, और जो हार जाएगा, उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। संगीत सूर्य बैजू बावरा जी ने न केवल यह प्रतियोगिता जीती, बल्कि अपनी गायकी के रागों के माध्यम से तानसेन को भी पराजित कर दिया। इसके अलावा बैजू बावरा जी ने तानसेन को मृत्यु दंड से भी बचाया। 

ऐसे पड़ा बैजू बावरा नाम 
बैजू बावरा जी को कलावती नाम की एक युवती से प्रेम हो गया था। उस युवती के वियोग में बैजू जी अपना आपा खो बैठे थे, जिसके कारण उनका नाम बैजू बावरा पड़ गया। 
बैजू बावरा जी को ग्वालियर के महाराज मानसिंग तोमर ने अपने महल में आमंत्रित किया, जिसके बाद उनकी महारानी मृगनयनी को बैजू बावरा जी ने संगीत की शिक्षा प्रदान की। 

जर्जर पड़ी है बैजू बावरा जी की समाधी 
बेहद दुःख की बात है कि बैजू बावरा जी, जिन्होंने महान गायक तानसेन को अपनी गायकी से पराजित किया, उन महान संगीतज्ञ की समाधि आज जर्जर स्थिति में है। वहीं ग्वालियर में तानसेन का मकबरा मार्बल से सुशोभित है। बसंत पंचमी पर बैजू बावरा जी की समाधी पर कई लोग दीप प्रज्वलित करने आते हैं, लेकिन किसी का ध्यान इस जर्जर समाधी की ओर नहीं जाता। सन् 1952 में बैजू बावरा नाम की फिल्म भी बनी थी, जिसके गाने भी खूब प्रचलित हुए। 

चंदेरी में हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है बैजू बावरा महोत्सव
चंदेरी में हर वर्ष बैजू बावरा महोत्सव बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है, और यहाँ दूर दूर से संगीत प्रेमी, संगीत के लिए राजा रानी महल में आते हैं। इसके लिए बैजू बावरा संगीत समारोह समिति के सचिव देवेंद्र माहेश्वरी जी ने कहा कि यह समारोह मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग की एजेंसी उस्ताद अलाउद्दीन खान कला द्वारा आयोजित किया जाता है। उन्होंने बताया कि चंदेरी तथा आसपास के क्षेत्र के सभी संगीत प्रेमी बैजू बावरा जी को आदर्श मानते हैं। देवेंद्र माहेश्वरी जी ने कहा कि बैजू बावरा जी चंदेरी में ही जन्मे, यहीं पले बढ़ें, संपूर्ण विश्व में वे विख्यात हैं, इसके बाद भी यहाँ उनकी एक भी प्रतिमा नहीं है, न ही चंदेरी में उनके नाम का कोई मार्ग या चौराहा है। जो पहचान उन्हें अपनी जन्मस्थली से मिलना चाहिए थी, वह आज तक नहीं मिली है।





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