चित्रकूट हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। चित्रकूट- चित्र+कूट शब्दों के मेल से बना है। संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक और कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। इस संबंध में कहावत है कि इस वनक्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत में मिलते थे, इसलिए इसका नाम चित्रकूट पड़ा।
प्रभु श्रीराम की स्थली चित्रकूट की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता संत तुलसीदास, वेद व्यास, आदिकवि कालिदास आदि ने अपनी कृतियों में किया है। मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा यह चित्रकूट धाम प्राचीनकाल से ही हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक सांस्कृतिक स्थल रहा है, आज भी चित्रकूट की पग-पग भूमि राम, लक्ष्मण और सीता के चरणों से अंकित है।
चित्रकूट धाम एक भव्य पवित्र स्थल है जहाँ पाँच गाँवों का संगम हैं, जिनके नाम कारवी, सीतापुर, कामता, कोहनी तथा नयागांव हैं। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है, जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से चित्रकूट को प्रमुख माना जाता हैं। भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक प्रभु श्री राम, माता सीता तथा श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करता है। पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित हो जाते हैं, वहीं तीर्थयात्री पयस्वनी/मन्दाकिनी में डुबकी लगाकर और कामदगिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत हो जाते हैं।
प्राचीन काल से चित्रकूट ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है। हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्म प्राप्त किया और अपनी साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला। अत्री, अनुसुइया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सारभंग, सुतीक्ष्ण और अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस चित्रकूट में अपना जीवन व्यतीत किया। जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुगंध है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है।
ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्थित कामदगिरि धार्मिक स्थल पर भगवान राम रहा करते थे। इस स्थान पर भरत मिलाप मंदिर भी है, जहाँ भरत ने श्रीराम से अयोध्या लौट चलने का अनुरोध किया था।
साथ ही यहाँ भरत कूप नाम का एक स्थान है। कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम के भाई भरत ने इस स्थान पर पवित्र जल का कुंड बनाया था, जहाँ परदेस के विभिन्न तीर्थस्थलों से पवित्र जल एकत्रित कर रखा जाता है। यह स्थान बहुत ही छोटा है जो कि इस नगर से कुछ दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यहाँ के रामघाट पर स्थित जानकी कुंड नाम का भव्य स्थान है। कहा जाता है कि सीताजी इस नदी में स्नान किया करती थीं। यहाँ की हरियाली भी दर्शनीय है। यह शांत और सुंदर स्थान वास्तव में कुदरत की अमूल्य देन है।
0 टिप्पणियाँ