त्रेतायुग के साथ साथ सतयुग में भी उल्लेख मिलता है पन्ना का

 

पन्ना हमारे देश का ऐतिहासिक नगर है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथ रामायण तथा अनेक पुराणों जैसे विष्णु पुराण, भविष्य पुराण आदि में मिलता है। इन पुराणों में पन्ना का प्राचीन नाम पद्मावती पुरी बताया गया है। वाल्मिकी रामायाण के 41 वें सर्ग में सुग्रीव ने इसका उल्लेख किलकिला खंड के रूप में किया है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह क्षेत्र राजा दधीचि की राजधानी थी। इसे सतयुग के राजा पद्मावती की राजधानी भी कहा जाता था। यहां की ग्राम पंचायत अहिरगवां स्थित सारंग धाम भगवान श्री राम के वनगमन मार्ग में शामिल है। किंवदति है कि पन्ना में भगवान राम ने वनवास के दौरान काफी समय वास किया। सतयुग में भगवान शिव पार्वती के इस स्थान पर भ्रमण करने और विष धारण करने की बात भी का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि महाभारत के पांडवों ने अपने वनवास का लम्बा समय पन्ना के जंगलों में व्यतीत किया था। यह स्थान पण्डव की गुफाओं तथा पाण्डव फॉल के नाम से जाना जाता है।
मध्यकाल में किलकिला नदी की दूसरी तरफ पनरा नाम का नगर था, जो गोंड राजाओं की राजधानी थी। जनश्रुति है, कि स्वामी प्राणनाथ ने मध्यकाल के महान योद्धा राजा छत्रसाल को पन्ना की हीरे की खानों के बारे में बताया था। इससे छत्रसाल के राज्य की आर्थिक स्थिति सुधरी थी। पन्ना को अपनी राजधानी बनाने के लिए स्वामी जी ने राजा छत्रसाल को प्रेरित किया था और उनके राज्याभिषेक की व्यवस्था भी की थी। उन्होंने ही बुन्देलखण्ड राज्य की स्थापना की थी। जिले का संबंध स्वतंत्रता सग्राम के इतिहास से भी जुड़ा है। आजादी के प्रमुख क्रांतिकारी पं. चन्द्रशेखर ने अज्ञातवास का कुछ समय यहीं बिताया था।
पन्ना देश का वह पहला स्थान है, जहां हीरे के भंडार का पता चला। यह जिला सुरम्य पर्वत मालाओं के मध्य बसा है, जो पूरी दुनिया में उज्ज्वल हीरों की खदानों के लिए जाना जाता है। पन्ना जिला मुख्यालय मंदिरों के नगर के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पन्ना राष्ट्रीय उद्यान है, जो बाघ पुनर्स्थापना के लिये प्रसिध्द है। इसमें बाघ संरक्षित क्षेत्र, केन घडियाल अभ्यारण्य, पाण्डव प्रपात आदि है।


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