बदहाल बुंदेलखंड की बेदर्द दास्तां, बेबस बेटियों ने माँ को जंजीरों में जकड़ा

 

हाल ही में बुंदेलखंड में नाबालिग बच्चों द्वारा अपनी माँ को जंजीरों में जकड़कर रखने का मामला सामने आया है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के शहर मुख्यालय में 48 वर्षीय शीला कुशवाहा को उसकी ही नाबालिग बेटियों ने जंजीरों और रस्सियों से हाथ-पैरों को बांधकर रखा हुआ है। ताज्जुब यह है कि इन बेबस नाबालिग बच्चों को इसके लिए कोई गलत नहीं कह रहा और न ही कोई आरोप लगा रहा है। इन बच्चों ने पिछले 4-5 दिनों से खाना नहीं खाया है और न ही किसी ने इनकी भूख मिटाने में मदद की है।

जानकारी के मुताबिक छतरपुर शहर के सिटी कोतवाली थाने के अंतर्गत रहने वाली 48 वर्षीय शीला कुशवाहा के पति हलकाईं कुशवाहा का 10 माह पहले बीमारी के चलते स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद से परिवार की सारी जिम्मेदारी शीला के कंधों पर आ गई। वह मेहनत-मजदूरी कर जैसे-तैसे अपने बच्चों और सास का पालन-पोषण कर रही थी। उसके परिवार में 80 वर्षीय सास हरबाई कुशवाहा, तीन नाबालिग बेटियां 16 वर्षीय कविता, 14 वर्षीय मंजू, 8 वर्षीय कल्पना और 12 वर्षीय एक बेटा चंचल हैं। दो बड़ी बेटियों की शादियां हो चुकीं हैं जो अब अपने ससुराल में रह रहीं हैं। लॉकडाउन के चलते पिछले कई महीनों से काम-काज बंद होने की वजह से शीला मेहनत-मजदूरी नहीं कर पा रही, जिससे परिवार के भूखे रहने की नौबत आ गई। बच्चों का लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई, बूढ़ी सास का रख-रखाव और बेटियों के भविष्य की चिंता उसे लगातार सताने लगी। इस चिंता ने शीला पर मानसिक प्रहार कर दिया, जिससे वह विक्षिप्तों जैसा व्यवहार करने लगी। अकेले बड़बड़ाते रहना, दिन-रात जागते रहना और खुद को नुकसान पहुंचाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया। बेबस बच्चे जैसे-तैसे मां को संभालते। समय के साथ शीला की विक्षिप्तता बढ़ती गई। हालत यह हो गई कि उसने अपने कच्चे मकान का छप्पर गिराना शुरू कर दिया, जिसके कारण उसे कई चोंटें आईं। बच्चों को कोई उपाय नहीं सुझा, तो उन्होंने पड़ोसियों से मदद मांगी और माँ को जंजीरों से जकड़ दिया ताकि वह खुद को और दूसरों को नुकसान न पहुंचा सकें। न चाहते हुए भी शीला को इसी हालत में खाना-पीना देने के साथ उसकी देखरेख करना बच्चों के लिए सबसे बड़ा काम बन गया है। अब यही इनकी दिनचर्या हो गई है। 

शीला के काम पर न जाने से परिवार की माली हालत और बिगड़ गई है। बूढ़ी सास कुछ करने लायक नहीं हैं। नाबालिग बच्चे अभी कमाने लायक नहीं हैं। सबके भूखों रहने की नौबत आ गई है और अब बच्चे घर में रखे सूखे चावल खाकर गुजर बसर कर रहे हैं। बाबजूद इसके इनकी मदद के लिए कोई भी नेता, अधिकारी, समाजसेवी संस्थाएं या जनप्रतिनिधि इनकी मदद के लिए सामने नहीं आ रहा है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ