देश का असली वीर पुरुष: 1965 के युद्ध में संपत्ति के साथ ही माँ के कंगन तक दान कर दिए थे बुंदेलखंड के इस लाल ने, आज झोपड़ी में गुजार रहा है जिंदगी



देश के लिए वही जिए-मरे, जो जीने के लिए रोटी खाते हैं, वो नहीं जो रोटी के लिए जीते हैं। अपने लिए तो सभी जीते हैं, वो विरले ही हैं जो देश के लिए जीते हैं। 
बुंदेलखंड का एक शख्स इतना दानवीर है कि उसने 1965 के युद्ध में अपनी सारी संपत्ति दान कर दी, यहाँ तक कि उसने अपनी माँ के कंगन तक दान कर दिए। हम बात कर रहे हैं झांसी के नेक दिल और दानवीर मोहन कुशवाहा उर्फ मोहन दालूदरी की।


यह जीवंत कहानी है उस वीर भूमि बुंदेलखंड की जहाँ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लड़कर बलिवेदी पर चढ़कर अमर हुईं। इसी वीर भूमि पर पृथवीराज चौहान, आल्हा-ऊदल और छत्रसाल जैसे वीर रहे। बुंदेलखंड की ही वीर भूमि के सपूत मोहन कुशवाहा उर्फ मोहन दालुदरी भी कमतर नहीं हैं। वे भी इन वीरों की श्रेणी में ही आते हैं, लेकिन गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गए हैं, और एक झोपड़ी में रह रहे हैं। कारण सिर्फ यह है किस उन पर और उनके नेक दिल पर किसी का ध्यान ही नहीं है। 
1965 के युद्ध मे अपनी सारी सम्पति दान कर अपनी मां के कंगन तक दान करने वाले मोहन कुशवाहा 80 साल की आयु में भी किसी के मोहताज नहीं हैं। न ही आज तक राशन मांगा न कभी राशन कार्ड की दरकार लगाई, बुंदेलखंड का यह वीर सपूत स्वावलंबन से अपना जीवन यापन कर बदहाल जीवन जीने को मजबूर हैं। लेकिन इसके विपरीत भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने कभी इनकी वीरता पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया, और आज मोहन एक छोटी से झोपड़ी में जिंदगी बसर कर रहे हैं।
देश के लिए अपनी संपत्ति दान कर देने वाले मोहन कुशवाहा सरकारी उपेक्षा और उदासीनता के शिकार हैं। बुन्देलखण्ड की दशा दर्शाते गुमनाम दानवीर वीरभूमि बुन्देलखण्ड की माटी के लाल मोहन कुशवाहा साहब को आज बुंदेलखंड के निवासी सलाम करते हैं। लेकिन प्रशासन के पास दृष्टि नहीं होने की वजह से वह इनकी इस महानता को आज तक न ही देख पाया है और न ही समझ पाया है। बुंदेलखंड ट्रूपल और बुंदेलखंड के सभी लोगों का अनुरोध है कि सरकार इस महान दानवीर की गरीबी दूर करे, जीवन यापन में इनकी मदद करे, और इन्हें इनका हक दे।

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