कर्ज और आर्थिक तंगी ने सागर जिले के एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। मंगलवार काे रहली के दुरकांची गांव का किसान खेत के पास पेड़ पर फांसी के फंदे पर लटका मिला। उन्होंने दाे बेटियाें की शादी जमीन बेचकर की थी और तीसरी बेटी की शादी के लिए 65 हजार रुपए का कर्ज लिया था। उन्हें अपनी 2 और बेटी की शादी की चिंता सता रही थी। वे बार-बार कहते थे कि बेटियों के हाथ कैसे पीले करा पाऊंगा। उस पर साेयाबीन की फसल खराब हाे गई।
बता दें कि जिले में 9 दिन में चौथे किसान ने फसल खराब हाेने और कर्ज के चलते आत्महत्या की है। मंगलवार सुबह 50 वर्षीय सुदामा पिता विष्णुप्रसाद कुर्मी की लाश उसके खेत में पेड़ पर फांसी के फंदे पर लटकी पाई गई। जानकारी मिलते ही परिजन पहुंचे। पुलिस ने शव काे पाेस्टमार्टम के लिए भेजा।
बाबूपुरा, कुमेरिया और नीमघाटी में भी आत्महत्या
12 अक्टूबर को गढ़ाकाेटा थाना क्षेत्र के बाबूपुरा गांव के किसान 61 वर्षीय भाेला पिता मानीसंग लोधी कर्ज के चलते खेत में लगे पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। किसान की सोयाबीन की फसल कम निकली थी तथा उस पर 2 लाख रुपए का कर्ज था।
15 अक्टूबर काे गाैरझामर थाना क्षेत्र के नीम घाटी के जंगल में 50 वर्षीय लाेकमन पिता कड़ाेरी विश्वकर्मा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उस पर भी कर्ज था।
16 अक्टूबर को गढ़ाकाेटा के कुमेरिया निवासी 35 वर्षीय जगदीश कुर्मी का शव नयाखेड़ा चनौआ तालाब के पास जंगल में पेड़ से फांसी के फंदे पर लटका मिला था। किसान दस दिन से लापता था। कर्ज के कारण वह मानसिक तनाव में था।
किसान की आत्महत्या का मामला गंभीर है, कराएंगे जांच
रहली में कर्ज के चलते किसान की आत्महत्या करने का मामला मेरे संज्ञान में आया है। मामले को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई की जा रही है। इस मामले की जांच कराई जाएगी।
-मुकेश शुक्ला, संभाग आयुक्त, सागर
92 हजार किसान कर्जदार, इन्हें भरोसा दिलाइए कि आप साथ हैं
सागर जिले में एक लाख 66 हजार किसान हैं, इनमें से 92 हजार किसान अब भी कर्ज में डूबे हैं। इस बार सोयाबीन की फसल खराब होने से उन्हें कहीं से भी यह उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है कि वे ये कर्ज चुका पाएंगे। यही वजह है कि वे जिस खेत के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी थकान मिटाते रहे, वहाँ बैठकर प्याज-रोटी खाते रहे, अब उसी पेड़ पर फंदा लगाकर मौत को गले लगा रहे हैं।
सागर जिले में आठ दिन में चार किसानों ने ऐसा ही किया। आश्चर्य की बात है कि उनके आंसू पोछने कोई नहीं आया। नेता चुनाव में अपने प्रत्याशी को जिताने में लगे हैं और अफसर चुनाव कराने में। चुनाव कीजिए, यह भी जरूरी है लेकिन कम से कम उन किसानों का यह भरोसा तो मत टूटने दीजिए कि शासन-प्रशासन उनके साथ है।
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