बुंदेलखंड: लुप्त हो चली है सुआटा की परंपरा




प्राचीन समय से बुंदेलखंड में शारदीय नवरात्र पर सुआटा (नौरता) खेले जाने की विशेष परंपरा है। सूर्योदय के अवसर पर बालिकाएं बुंदेली गीत सूरज मल के घुल्ला छूटे.., चंद्रामल के घुल्ला छूटे.. को गाते हुए आकर्षक रंगोलियां बनाती हैं। दो दशक पहले तक सुआटा झाँसी के सभी गली-मोहल्लों में बड़े ही हर्षोल्लास से खेला जाता था। लेकिन अब यह परंपरा लुप्त होती जा रही है। अब सिर्फ ग्रामीण अंचलों में ही यह लोक परंपरा सिमित रह गई है।


सुआटा खेलने का उत्साह शहर के कई इलाकों में कभी शारदीय नवरात्र के एक दिन पहले से खूब दिखाई देता था। बालिकाएं रात में शहर के गोला कुआं, सीपरी, सदर, गुदरी, दतिया गेट, बड़ागांव गेट सहित कई क्षेत्रों में गोबर से चौक लीपती थी और दीवार पर सुआटा राक्षस का प्रतीक चित्र अथवा प्रतिमा बनाती थी। भोर होते ही बुंदेली गीतों को गाते हुए वे चौक पर आकर्षक चित्र तथा रंगोलियां बनाती थी। 
साथ ही रामनवमी पर गौर की पूजा का विशेष आयोजन होता था। सुआटा के साथ ही झिंझिया, टेसू जैसे आयोजन भी होते थे। लेकिन अब यह परंपरा सिर्फ गांव देहात तक सीमित रह गई है। शहर की अधिकांश नई पीढ़ियां बुंदेलखंड की इस शानदार परंपरा से अनजान हैं।

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