बुंदेलखंड में रामलीला मंचन की परंपरा काफी पुरानी है। यहाँ कोंच की रामलीला अनोखी है। लगभग 158 वर्ष पुरानी इस रामलीला के अंतर्गत 13 दिन लीलाएं होती हैं, जो मंच के अलावा मैदान में भी होती है। भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता का बुंदेलखंड की धरती से व्यापक नाता है। यही, वजह है कि लगभग सभी शहरों एवं ग्रामीण अंचलों में रामलीलाएं दशकों से होती आ रही हैं। खास बात यह है, कि यहां की रामलीला लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
बुंदेलखंड की रामलीलाओं में कोंच की रामलीला का विशेष महत्व है। शहर के चारोें छोरों पर जिनमें सरोवर, मंदिर होते हैं, वहां लीलाएं होती हैं। श्री धर्माद्धा रक्षिणी सभा द्वारा संचालित रामलीला कोंच के कलाकार विभाग के उपाध्यक्ष एवं रावण का किरदार हर साल निभाने वाले संजय सिंघाल का कहना है कि पूर्वजों का मूल उद्देश्य था, कि शहर के सभी छोरों के लोग एक दूसरे के संपर्क में आएं और रामलीला में भाग लें। शिक्षक, कर्मचारी, अधिवक्ता, व्यापारी सभी कोंच की रामलीला में काम करने के लिए उतावले रहते हैं। इस बार कोविड-19 से बचाव के कारण सिर्फ तीन लीलाएं होंगी। इनमें धनुष यज्ञ, राम वनवास और लंका दहन होगा। वहीं, कई कलाकार ऐसे है, जो कई पीढ़ियों से भूमिकाएं निभा रहे हैं।
घर-घर होता है श्रीराम, लक्ष्मण और मां सीता का स्वागत
कोंच की रामलीला में हर साल बच्चे ही राम, लक्ष्मण और सीता के स्वरूप में होते हैं। लीला के दौरान यह जिस रास्ते से निकलते हैं, वहां तोरण द्वार बनाए जाते हैं, घर-घर आरती और वंदना होती है, चरण पखारे जाते हैं। मैदानी लीलाओं में सरयू पार मेला, मारीच वध और राम रावण युद्ध मेला का आयोजन होता है।
दूर-दूर से आते हैं दर्शक
ब्रिटिश हुकूमत में प्रारंभ हुई इस रामलीला में कई क्रांतिकारी एवं सत्याग्रही भी जुडे़ रहे हैं। पहले कई ऐसे कलाकार, संवाद लेखक, मेकअप मैन आदि होते थे, जिन्होंने देश की आजादी में हिस्सा लिया। कोंच की रामलीला के वरिष्ठ बुजुर्ग कलाकार सूरज प्रसाद शर्मा के अनुसार यहां की रामलीला को देखने के लिए दूर दूर से दर्शक आते हैं।
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