बुंदेलखंड में वृक्षों की कटाई कर बना रहे मौत का रास्ता

 
बुंदेलखंड में झांसी से खजुराहो, चित्रकूट से इलाहाबाद, नरैनी से कालिंजर सतना में बहुत से वृक्षों को काट दिया गया है। कई वृक्षों को काटना बाकि है, उनकी छाती पर उनके कटने का नंबर लिख दिया गया है। हालांकि जिस काम के लिए वे काटे गए हैं, वह काम भी अधूरा पड़ा हुआ है। 
सनातन ग्रंथों में बताया गया है कि एक वृक्ष दस पुत्र के समान हैं। 
बांदा से सतना, झांसी से खजुराहो, इलाहाबाद, बांदा से कालिंजर की यात्रा के दौरान पांडेय जी ने देखा कि रोड बनाने के नाम पर सैकड़ों वर्ष पुराने वृक्षों को विकृत मानसिकता के साथ जिस तरह काटा गया है, वह आने वाले कई वर्षों तक मानव को चोट पहुंचाते रहेंगे। महुआ, आम, पीपल, बरगद, जामुन, शीशम जैसे वृक्षों को काट दिया गया। यह विकास के नाम पर वृक्षों की कटाई नहीं हो रही है, बल्कि अपनी ही मौत का रास्ता बना रहे हैं।
जिस चित्रकूट का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने किया है, उसमें प्रभु श्री राम को वन का राजा बताया है। वहां के हजारों ऋषियों-मुनियों तथा तीर्थ यात्रियों के वनगमन के दौरान स्वयं भगवान राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण की शरण स्थली रही चित्रकूट के वृक्षों को निर्दयता के साथ काटा जा रहा है। चित्रकूट से इलाहाबाद मार्ग पर बसे गांवों की तरफ चलेंगे तो हजारों पुराने वृक्ष कटे हुए पड़े हैं। विश्व प्रसिद्ध कालिंजर नरैनी से कालिंजर जाते समय दो हजार वृक्ष काटे गए हैं। पिछले वर्ष इन वृक्षों पर नंबर लिखे गए थे, इस वर्ष कट गए। क्या इसे विकास कहते हैं? 
दूसरे देशों में वृक्ष काटे नहीं जाते हैं, बल्कि उखाड़कर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिए जाते हैं। लकड़ी काटने के नाम पर और पुरानी लकड़ी बेचने के नाम पर यहां वृक्ष काट दिए जाते हैं। वह लकड़ी कहां जाती है, उसका मूल्य क्या होता है, किसी को नहीं पता। जो विभाग जिम्मेदार है वह चुप है। वृक्षों को उखाड़ने के लिए जब करोड़ों रुपए की जेसीबी आ सकती है, तो वृक्षों को शिफ्ट करने के लिए मशीन क्यों नहीं मंगाई जा सकती है? यह जवाब देने वाला भी कोई नहीं है।

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