कर्म न्यायाधीश है, इससे जरूर डरें: प्रतीक सागर, दतिया में धर्मसभा को संबोधित कर दिए गए प्रवचन



दतिया के सोनागिर के पुष्पदंत सागर सभागृह में कल प्रवचन दिए गए। संसार में जन्म-मरण का सिलसिला तोड़ना है तो सत्य का दर्शन करना आवश्यक है। इस मनुष्य भव में जो अपने निज सत्य को नहीं जानता वह मंदबुद्धि है। जीवन में धन-दौलत के लिए हाय-हाय नहीं करो, जो है उसमें तृप्त रहो। जो पा लिया वह पर्याप्त है क्यों दूसरों की ओर ताकते हो। ये विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने सोमवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में दतिया के सर्व समाजजनों को संबोधित करते हुए कहे।
वे कहते हैं कि क्यों दूसरों को देखकर दुखी होते हो उसके पास है मेरे पास नहीं है। यही सोच दु:ख का सबसे बड़ा कारण है। इसी में वह पूरा जीवन हाय-हाय में निकाल देता है। जब मौत आती है तो खाली हाथ ही संसार से चला जाता है। इसलिए जीवन में वो जोड़ों जो मरने के बाद भी साथ जा सके। 
उन्होंने आगे कहा कि जीवन में कोई किसी को परेशान नहीं करता है। खुद के जाल में उलझकर ही मानव दुखी होता है। जब तक आयु है तब तक इस शरीर में जान है। जिस समय आयु पूरी हो जाती है तुम्हारी सब इच्छाएं रखी रह जाती हैं और मौत आ जाती है। अच्छी कल्पनाएं करने से पुण्य बढ़ता है, जबकि दूषित कल्पना करने से पाप बढ़ता है। इसलिए सोचो तो प्रभु की भक्ति की सोचो।
मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज आगे कहते हैं कि किसी से डरो या न डरो लेकिन कर्म से डरो, क्योंकि कर्म न्यायाधीश है। कर्म के अनुसार ही हमें अपने कर्मों की सजा मिलती है। यदि कोई अमीर के घर जन्म लेता है, तो यह निश्चित है कि वह पूर्व जन्म का बड़ा दानी है। जिस व्यक्ति के पाप कर्म का उदय होता है, उसे कहीं शरण नहीं मिलती। पुण्य कर्म के उदय से हर जगह शरण मिलती है। कर्म को तो भोगना है, पुण्य के रूप में या पाप के रूप में। मेरी तो भावना है कि कोई पाप न करे, पुण्य कर उसका फल भोगें।

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