बांदा। देश में कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने सीमित संसाधनों और उचित प्रबंधन से गोवंश आधारित प्राकृतिक खेती से एक एकड़ में एक से चार लाख रुपये कमाने का कीर्तिमान बनाया है, यह कहना है उत्तर प्रदेश कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य श्याम बिहारी गुप्त का। ऐसे ही किसानों के अनुभवों को लेते हुए बुंदेलखंड में किसानों को प्रशिक्षण के लिए किसान समृद्धि यात्रा की शुरुआत की गई है।
बता दें कि यात्रा के साथ आए आयोग के सदस्य श्याम बिहारी गुप्त ने किसानों के जत्थे के साथ छनेहरा गांव स्थित प्रगतिशील किसान असलम भाई के मॉडर्न जैविक कृषि फार्म का जायजा लिया।
असलम ने किसानों को वर्षा जल संचय, खेत तालाब योजना, गो पालन, गोमूत्र संग्रह, रासायनमुक्त, इंटीग्रेटिड फार्मिंग में बकरी पालन, मुर्गी पालन, गाय पालन, मछली पालन, जैविक खेती, प्याज भंडार गृह, दलहन प्रसंस्करण आदि का भ्रमण कराया और टिप्स दिए।
जैविक कीट रोग रक्षक 10 परणी अर्क, खली की खाद, मल्टीटायर फार्मिंग के बारे में भी बताया। जत्थे का नेतृत्व कर रहे गुप्त ने जीवामृत बनाने का किसानों को व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया। साथ ही देशी गोवंश की महत्ता बताई।
यात्रा के जत्थे में विष्णु प्रिया (राउलकेरा उड़ीसा), उदय नारायण भारती (कमासिन बांदा), रामसागर सिंह (वैशाली बिहार), सचिन कुशवाहा (झांसी), देशराज सिंह, मन्नी सिंह (बांदा) भी शामिल रहे। श्याम बिहारी गुप्त ने बताया कि समृद्धि यात्रा बुंदेलखंड के सात जिलों के 47 ब्लॉकों में प्रस्तावित है। पहले चरण में 15 दिवसीय यात्रा की जा रही है। प्रत्येक ब्लॉक के 10 गांवों में किसानों की समृद्धि के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।
इस विषय का नाता कहीं न कहीं #2030 के भारत के बारवें लक्ष्य संवहनीय उपभोग तथा उत्पादन से है। इसका उद्देश्य कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके साथ ही उपभोक्ता स्तरों पर भोजन की प्रति व्यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान सहित उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना, स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार रसायनों और उनके कचरे का उनके पूरे जीवन चक्र में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रबंधन हासिल करना, वायु, जल और मिट्टी में उन्हें छोड़े जाने में उल्लेखनीय कमी करना ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनका विपरीत प्रभाव कम से कम हो। इसके साथ ही 2030 तक रिसाइक्लिंग और दोबारा इस्तेमाल के जरिए कचरे की उत्पत्ति में उल्लेखनीय कमी करना भी इस लक्ष्य के अंतर्गत सुनिश्चित किया गया है।
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