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राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष: महामारी, भारतीय युवा और केंद्र सरकार का रोल

कोरोना वायरस ने भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में भारी तबाही मचाई है. GDP के पूर्वानुमान नकारात्मक हो चले हैं और देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में देश के ज्यादातर युवा भयंकर बेरोज़गारी और शिक्षा में व्यवधान के साथ असफल होती शिक्षा व्यवस्था की मार भी झेल रहे हैं।

ऐसे में सरकार की कोशिश ये होनी चाहिए कि वो युवाओं को न केवल मौजूदा आर्थिक संकट से निजात पाने में मदद करे, बल्कि ये प्रयास भी करे कि इस समय भारत जिस आबादी के संकट से दो-चार है, उससे भी बच सके.

भारत के युवाओं पर महामारी के तुलनात्मक रूप से अधिक बुरे असर से निपटने के लिए ज़रूरत इस बात की है कि सरकार, युवाओं को राहत देने के लिए ख़ास उनके लिए प्रयास करे. सरकार की कोशिश ये होनी चाहिए कि वो युवाओं को न केवल मौजूदा आर्थिक संकट से निजात पाने में मदद करे, बल्कि ये प्रयास भी करे कि इस समय भारत जिस आबादी के संकट से दो-चार है, उससे भी बच सके.

भयंकर बेरोज़गारी

इस महामारी से पहले से ही युवाओं के बीच लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट लगातार बड़ी तेज़ी से घट रहा था. वर्ष 2004-05 में जहां ये 56.4 प्रतिशत था, तो 2018-19 में युवाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट घट कर केवल 38.1 प्रतिशत ही रह गया था. इससे भी चिंताजनक बात तो NLET के आंकड़े थे. NLET यानी नॉट इन लेबर फोर्स, एजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग के तहत उन लोगों की संख्या का आकलन किया जाता है, जो न तो कोई काम कर रहे हैं, न ही काम की तलाश में हैं, और न ही वो किसी तरह की शिक्षा या प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

भारत में ऐसे युवाओं की संख्या दस करोड़ से अधिक  है. और ये आंकड़ा तब है जबकि सरकार ने देश के बेकार बैठे युवाओं को नए हुनर सिखाने, उनके बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोज़गार सृजन के लिए कई प्रयास किए हैं. 

कॉन्ट्रैक्ट पर काम मिलने के कारण, युवाओं के रोज़गार की स्थिति बहुत नाज़ुक हो जाती है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 की महामारी से पहले से ही युवाओं के दरमियान बेरोज़गार रहने की दर तीन गुना अधिक पायी गई थी, और कोरोना वायरस की महामारी ने हालात और बिगाड़ने का ही काम किया है. एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा किए गए एक और अध्ययन के मुताबिक़, कोविड-19 की महामारी के कारण, अकेले भारत में ही 41 लाख युवाओं की नौकरियां चली गईं.

शिक्षा में व्यवधान

इस महामारी के कारण पूरी दुनिया में 73 प्रतिशत युवाओं की पढ़ाई में बाधा आई है. भारत में महामारी के दौरान शिक्षा में बाधा पड़ने की एक और बड़ी वजह डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता में भारी असमानता है. स्मार्टफ़ोन रखने के मामले में भारत में बहुत अधिक असमानता देखने को मिलती है. यही स्थिति इंटरनेट की सुविधा के मामले में भी है. इसी वजह से भारत के बहुत से छात्रों को अपनी शिक्षा में लंबी अवधि के लिए व्यवधान पड़ने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, कुछ इलाक़ों में स्कूल खोले गए हैं, फिर भी छात्रों की भीड़ न जुटे इसके लिए अभी ऑनलाइन शिक्षा को ही अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की प्रोफ़ेसर आर. सी कुहड़ कमेटी की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत के वर्तमान डिजिटल मूलभूत ढांचे में बड़े अंतर के कारण देश को शिक्षा के ऑनलाइन माध्यम को अपनाने में मुश्किलें पेश आई हैं.

असफल होती शिक्षा व्यवस्था

युवाओं के बीच बेरोज़गारी और शिक्षा की बेहद चिंताजनक स्थिति को और बिगाड़ने में देश के तमाम संस्थागत, अलग अलग शिक्षा बोर्ड और अलग अलग राज्यों की अलग शिक्षा व्यवस्था ने भी बड़ा योगदान दिया है. क्योंकि हर राज्य की शिक्षा व्यवस्था इस महामारी के संकट से अपने अपने तरीक़े से निपट रही है। एग्जाम कराने में देरी से लेकर फाइनल ईयर की भर्ती तक, सब में देरी हो रही है. इसके कारण बहुत से युवाओं के हाथ से नौकरी के अवसर पूरी तरह से निकल जा रहे हैं. ये बात कम अवधि के लिए तो तकलीफ़देह है ही, पर इसका असर लंबी अवधि में भी रोज़गार और वेतन पर पड़ने वाला है. 

बेहतर भविष्य का निर्माण

पिछले एक दशक में जिन सेक्टरों में सबसे अधिक रोज़गार सृजन होता देखा गया है, वो हैं- मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड, होटल और ट्रांसपोर्ट. इस महामारी के कारण, अर्थव्यवस्था के इन्हीं सेक्टर्स पर सबसे बुरा प्रभाव देखने को मिला है. इन सेक्टरों में नई जान डालने के लिए भारी मात्रा में सरकारी निवेश और ख़ास तौर से युवा आबादी को मदद करने का लक्ष्य बनाकर सघन प्रयास करने की ज़रूरत है. युवाओं को भयंकर बेरोज़गारी की मार से बचाने के लिए, शहरी रोज़गार गारंटी योजना, जिसका प्रस्ताव ज्यां द्रेज़ ने दिया था, वो लाने की ज़रूरत है. इसमें युवाओं को रोज़गार देने पर अधिक ज़ोर देने के लिए सम्मानजनक कार्य की व्यवस्था करनी बेहद आवश्यक है.

इसके अलावा इस बात के लिए भी विशेष कोशिशें करनी होंगी, जिससे सतत शिक्षा में कम से कम बाधा पड़े और युवाओं के अलग अलग समुदायों के बीच डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता के अंतर को कम किया जा सके. भारत सरकार के नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफ़िस द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार, आज देश के एक चौथाई से भी कम घरों में इंटरनेट की सेवा उपलब्ध है.

युवाओं को भयंकर बेरोज़गारी की मार से बचाने के लिए, शहरी रोज़गार गारंटी योजना, जिसका प्रस्ताव ज्यां द्रेज़ ने दिया था, वो लाने की ज़रूरत है. इसमें युवाओं को रोज़गार देने पर अधिक ज़ोर देने के लिए सम्मानजनक कार्य की व्यवस्था करनी बेहद आवश्यक है.

इंटरनेट वाले ऐसे घरों की संख्या तो दस प्रतिशत से भी कम है, जहां छात्र रहते हैं. सभी राज्यों ने तो नहीं, लेकिन कई राज्यों की सरकारों ने ऐसे क़दम उठाए हैं, जिससे छात्रों के पढ़ाई बीच में छोड़ने की समस्या को कम से कम किया जा सके. इसके लिए एक बड़े और व्यापक दृष्टिकोण की ज़रूरत है. साथ ही साथ इस मामले में केंद्र सरकार को दख़ल देने की आवश्यकता है, इन चुनौतियों से निपटने की हर राज्य की अपनी अलग क्षमता होती है. ऐसे में पूरे देश में केंद्र द्वारा संचालित एक समान प्रयास के अभाव से युवाओं के बीच क्षेत्रीय स्तर पर असमानता विकसित होने लगेगी.

इसके अतिरिक्त, ऐसी शिक्षा देने पर ज़ोर होना चाहिए, जिससे केवल नौकरी तलाशने वाले युवा ही न तैयार हों, बल्कि नौकरी का सृजन करने वाले छात्रों का भी निर्माण किया जा सके. इसके लिए उद्यमिता को बढ़ावा देने के सघन प्रयास लगातार जारी रखने पड़ेंगे. औद्योगिक समुदाय और सरकार के मिले जुले प्रयास से एक अच्छी तरह काम करने वाले हुनर की मांग और आपूर्ति वाली व्यवस्था का निर्माण करने की कोशिश जारी रहनी चाहिए.


नोट: इस लेख के प्रमुख अंश ORF से लिए गए हैं। 

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