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किसान आंदोलन: किसानों के मन में उठ रहे सवाल

कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के नेताओं के बीच नौवें दौर की वार्ता कल (15 जनवरी) होनी है। अब तक दोनों के बीच आठ दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई भी ठोस हल नहीं निकल सका है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनों पर रोक लगाए जाने और चार सदस्यीय कमेटी के गठन के बाद अगली बैठक पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।


हालांकि, अभी तक शुक्रवार की बैठक को लेकर किसान संगठनों और केंद्र सरकार की ओर से कोई भी आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। किसानों के एक वर्ग का मानना है कि जैसा कि शीर्ष अदालत ने एक समिति बनाई है जो किसानों की शिकायतों को सुनेगी तो ऐसे में समानांतर बातचीत जारी रखने का कोई फायदा नहीं है। केंद्र के साथ आठ दौर की बातचीत से कोई फायदा नहीं मिला है।

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कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार लगातार किसानों के साथ बातचीत करने के पक्ष में है, क्योंकि कृषि राज्य मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा है कि बातचीत से ही कोई समाधान निकाला जा सकता है। वहीं, किसानों ने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सामने जाने से इनकार कर दिया है। किसानों का मानना है कि कमेटी के चारों सदस्य सरकार समर्थक हैं और इसी वजह से उनकी बातें नहीं सुनी जाएंगी। 

सुप्रीम कोर्ट का कानूनों पर रोक केंद्र और किसानों दोनों के लिए निराशा के रूप में सामने आया है। एक अन्य कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी का कहना है कि सरकार नहीं चाहती कि कानूनों पर रोक लगे। उन्होंने कहा, "हम नहीं चाहते थे कि संसद में पारित किए गए कानूनों पर रोक लगे। इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वमान्य है। हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हैं।" वहीं, एक किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि हम किसी भी कमेटी के सामने उपस्थित नहीं होंगे। हमारा आंदोलन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ है। हमने सुप्रीम कोर्ट से कमेटी बनाने का कभी अनुरोध नहीं किया और इसके पीछे सरकार का हाथ है।

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