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कट्टरवाद की भेंट चढ़ा एक और आंदोलन

भारत ने गणतंत्र दिवस पर जो देखा वह न तो इससे पहले कभी देखा गया और न ही तिरंगे के अपमान का ये दृश्य आगे भी देश देखना चाहेगा. लाल किला देश का स्वाभिमान है. देश की आन बान शान का प्रतीक है लेकिन कोई भी आंदोलन देश  या देश की संप्रभुता अखंडता और एकता को चुनौती नहीं दे सकता. किसी भी ध्वज को तिरंगे के समानांतर फहराया नहीं जा सकता. 

हालांकि आंदोलन के अधिकार को नकारा नहीं जा सकता लेकिन आंदोलन में अगर अराजक तत्व घुसकर देश के लोकतंत्र को ही चुनौती देने लग जाएं तो ऐसे आंदोलन के पतन से भी इंकार नहीं किया जा सकता. सरकारों की जिम्मेदारी है कि ऐसे अराजक तत्वों को उनके परिणाम तक पहुंचाएं ताकि 26 जनवरी जैसा अनैतिक और अपमानजनक कृत्य दोबारा न हो. अगर देखें तो मौजूदा किसान आंदोलनकारियों से अधिक धैर्य केंद्र और दिल्ली पुलिस ने दिखाया. किसान चाहते तो केंद्र से 12 दौर की बातचीत में कोई न कोई हल जरूर निकाल लेते पर वह अपने प्रचंड हठयोग और कथित विपक्षी राजनीतिक दबाव की वजह से अपने आंदोलन की दुर्गति करा बैठे. 

ज्ञात हो, इस देश ने कई बड़े आंदोलन देखे जिनमें से कई ने देश के कानूनों को दशा और दिशा दी लेकिन कई आंदोलन अनावश्यक मांगों की वजह से दम तोड़ते देखे गए. मौजूदा किसान आंदोलन को भी उसी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा जो किसानों ने अपने बीच खालिस्तानियों को पनपने देने के संबंध में की थी. क्या किसी ने सोचा था कि दो महीने से भी अधिक समय से चले आ रहे किसान आंदोलन का ये हश्र होगा ? दरअसल किसानों को उस समय ही अपने बीच घुस आए कट्टरपंथियों को हटाना चाहिए था लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके और इसी वजह से एक विशाल आंदोलन के तंबू उखड़ने लगे हैं. आम जनमानस की किसानों के प्रति सहानुभूति खत्म होने लगी है. करीबन दो महीनों से राजधानी के बाॅर्डरों को बंधक बनाने की वजह से परेशान हुए कई गांवों के लोग ही किसान आंदोलन के खिलाफ खड़े हो गए हैं. 

बहरहाल देश देख रहा है कि आंदोलन अंतिम सांसें गिन रहा है. कई किसान संगठनों ने कदम पीछे खींच लिए है लेकिन टिकैत जैसे कई नेताओं के तेवर अब भी कम नहीं हो रहे. इस बीच पुलिस कई बाॅर्डर खाली करा चुकी है और आज देर रात बंधक बनी दिल्ली के उन रास्तों पर भी यातायात सामान्य हो पाएगा इसका हर आम जनमानस इंतजार कर रहा है. 

खैर! किसान आंदोलन कितना सही था और कितना गलत इसका आकलन बुद्धिजीवियों पर छोड़ देना चाहिए वहीं इस बात पर थोड़ा शोक मनाना चाहिए कि दो महीने के किसान आंदोलन का यूं दुखद अंत हुआ तो इस बात पर खुश भी हो लेना चाहिए कि लाल किले पर धर्म विशेष ध्वज फहराने का कुत्सित प्रयास कर विद्रोही देश के सामने एक्सपोज़ हो चुके हैं तो भारतीयता का प्रतीक तिरंगा पूरी शान के साथ लाल किले पर अपनी शान को अंकित कर रहा है.

 -जयराम चतुर्वेदी

सीनियर जर्नलिस्ट दिल्ली



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