Banner

शिकागो में हिन्दू धर्म पर क्या बोले थे स्वामी विवेकानंद?

 

जब भी स्वामी विवेकानंद का जिक्र होता है, तब अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में साल 1893 में दिए गए भाषण के बारे में बात जरूर होती है. स्वामी विवेकानंद और धर्म को दिए गए उनके इस भाषण को ऐतिहासिक भाषणों में से एक माना जाता है. इस भाषण में उन्होंने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया था.



वहीं, हिंदू धर्म और स्वामी विवेकानंद को लेकर कई बातें शेयर की जाती हैं. ऐसे में उनकी जयंती के मौके पर जानते हैं कि आखिर स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म के लिए क्या कहते थे और उन्होंने अपने इस ऐतिहासिक भाषण में धर्म को लेकर क्या कहा था…

इस भाषण में ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ संबोधन में एक ऐसा आकर्षण था, जिसने पूरी दुनिया को यह भाषण सुनने को मजबूर कर दिया. क्या आप जानते हैं शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में वे कुछ हफ्तों पहले पहुंच गए थे. अमेरिका की ठंड सहन करने के लिए स्वामी जी के पास न पर्याप्त कपड़े थे और ना उनके पास पैसे थे.

उन्होंने भीख मांगकर अपना वो वक्त गुजारा और यहां तक कि मालगाड़ी में अपनी रात भी गुजारी. असाधारण होने के बावजूद साधारण लोगों की तरह जीवन-यापन करने वाले स्वामी जी के इसी भाव ने पूरी दुनिया को उनसे जोड़ दिया.

भाषण की शुरुआत में किया हिंदू धर्म का जिक्र

इस भाषण की शुरुआत उन्होंने ‘मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों’ से की थी और उसके बाद उन्होंने भाषण की शुरुआत में ही हिंदुओं की ओर से आभार व्यक्त किया था. उन्होंने भाषण की शुरुआत में ही कहा, ‘आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है और मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.’

ऐसे दी हिंदू धर्म की परिभाषा

इसके बाद उन्होंने भाषण के बीच में कहा, ‘मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से संबंध रखता हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया है. हमारा सिर्फ सार्वभौमिक प्रसार में ही नहीं, बल्कि हम सभी धर्मों को सच मानते हैं. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे राष्ट्र से हूं, जिसने सभी धर्मों और पृथ्वी के सभी देशों के शरणार्थियों और शरणार्थियों को शरण दी है. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे देश से हूं, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.

इसके अलावा ने उन्होंने कई बार सभी धर्मों के मानने पर जोर दिया. उनके लिए धर्म की व्याख्या कितनी तर्किक और वैज्ञानिक है, यह इसी से स्पष्ट होता है जब वे कहते हैं -पहले रोटी बाद में धर्म. विवेकानंद ने ईश्वर तत्व की बहुत सरल व्याख्या की है. वे मानते थे कि ईश्वर भक्त के साथ-साथ व्यक्ति को राष्ट्रभक्त भी होना चाहिए. इसके लिए व्यक्ति का स्वस्थ होना बेहद जरूरी है.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ