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उदासी और दुःख नशा है

उदासी और दुःख नशा है। बड़े कहते है नशा कैसा भी हो बुरा होता है। बुद्ध कहते है दुःख तो है, हम सब जानते है दुःख तो है लेकिन दुःख में रहना जीवन तो नहीं है न? फिर उपाय? उपाय सिर्फ और सिर्फ दुःख के पार मौजूद उस दरवाज़े तक जाना है।

हमारा पैदा होना एक बहुत बड़ी घटना है। एक चमत्कार है, एक सृजन है। चमत्कार इसलिए कि जरा सोचिए जब दुनिया के सबसे पहले स्त्री-पुरुष ने किसी बच्चे को जन्म दिया होगा तो उनके दिमाग की स्तिथि कैसी होगी? वो क्या सोच रहे होंगे? उनके लिए ये किसी सृजन जैसा ही होगा न। कितनी मुसीबतों से गुजरकर आज हम यहां तक आ गए। क्या हमारा सृजन इसलिए हुआ कि हम ख़ुद को ताउम्र दुःखी रखे, दुःख में जिए, दुःखों को आदत बना ले, ख़ुद को परेशान रखे और मर जाए।

प्रश्न बड़ा है। जीवन का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न। उत्तर भी पास ही है, बस खोजे जाने की देर है। खोजना भी एक प्रक्रिया है, जीवन की प्रक्रियाएं कुछ नहीं तो अनुभव तब भी देती ही है। अनुभव कोई भी हो कभी बेकार नहीं जाते। 

खोजे जाने की प्रक्रिया मुश्किल हो सकती है लेकिन असम्भव बिल्कुल नहीं। उस दरवाज़े के पार खूबसूरत रास्ता है, रास्ते पर ढलता और उगता हुआ सूरज है जिसे ठहरकर कुछ क्षण देखे तो जान पाएंगे कि ये सबकुछ कितना प्यारा है, मन को मोह लेने जैसा। 

हमें जाना होगा दोस्तों...


लेखक: पीयूष

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