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करवा-चौथ

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सौभाग्यवती नारियाँ अपने पति की रक्षार्थ जो व्रतोत्सव मनाती हैं, वह सम्पूर्ण बुन्देलखंड में करवा-चैथ के नाम से जाना जाता है। स्त्रियाँ स्नान करके चैक पूरती हैं। उस पर पटा रखती हैं। उस पटे पर जलभरा लोटा रखा जाता है। मिट्टी का एक करवा भी रखा जाता है, जिसमें गेहूँ भरे होते हैं। करवे पर रखे ढक्कन में कुछ रुपये-पैसे और चीनी भर दी जाती है। फिर रोली, गुड़, चावल आदि से पूजन होता है। करवे का टीका तेरह बार किया जाता है, तथा उसे पटे के चारों ओर घुमाकर उसी पर रख देते हैं। 


तब लोटे को, जिसे श्री गणेश जी का कलश कहते हैं, गुड़, चावल आदि स्त्रियों द्वारा ही चढ़ाया जाता है। हाथों में गेहूँ के तेरह दाने लेकर स्त्रियाँ करवा-चैथ पर्व की कथा का श्रवण करतीं हैं। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ फेरती हैं और फिर अपनी-अपनी सासों के चरण स्पर्श करतीं हैं। हाथों में लिए गेहूँ के दानों और कलश को फिर यथा स्थान रख देती हैं। रात्रि में चन्द्रदर्शन के उपरांत उसे अध्र्य देकर प्रसाद ग्रहण करतीं हैं। इस तरह दिनभर रखा गया स्त्रियों का व्रत रात्रि में खुलता है और वे प्रसन्नतापूर्वक वस्त्राभरण धारण कर खूब सजती-संवरतीं हैं।

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