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बुन्देलखण्ड में बालक मनाते हैं ’टिशू’ या ’टेसू’ का खेलोत्सव

क्वांर मास में शुक्ल पक्ष के आरम्भ होते ही ’नौरता’ अथवा ’सुअटा’ का खेलोत्सव जिस प्रकार कन्यायें मनाती हैं, उसी प्रकार अष्टमी के दिन बुन्देलखण्ड के बालक ’टीसू’ या ’टेसू’ का खेलोत्सव मनाते हैं, जिसमें ये लड़के मिट्टी, बांस, खपच्ची आदि सामग्री से तीन टांग वाला पुतला बनाकर उसे रुई अैर रंग-बिरंगे कपड़ों व कागजों से बढ़िया सजाते हैं और फिर उत्साह तथा उल्लासपूर्वक गीत गाते हुए जुलूस निकालते है। तीन टांगों और चार भुजाओं वाले साज-सज्जित, इस पुतले के साथ ही एक बालक को भी टेसू की भांति सजाया जाता है जो अपने ’टेसू’ की स्तुति-गान करता चलता है। एक ओर जहाँ कन्यायें झिंझिया गीत गाती हुई, अपनी सरस स्वर लहरियों द्वारा मानस के मन को मोहती चलती हैं, तो दूसरी ओर ये किशोर बालक टेसू गीत गाते हुए, जनमानस का मनोरंजन करते द्वार-द्वार घूमते हैं-


टेसू अगड़ करें, टेसू बगड़ करें।

टेसू झगड़ करें, टेसू लेई के टरें।।

टेसू मारें घर बल्लायें,

चकिया-चूल्हे सब वह जाये।

पानी पीते तीन घड़ा, खाने को चाहिए तीन पड़ा।

टेसू बब्बा हेंई अड़े, खाने को मांगे दही बड़े।

दही बड़े में मिर्ची भौत, टेसू पहुँचे कानी हौद।।

टेसू बब्बा कों के? धरम पुरा के।

टेसू जाते द्वार द्वार, हाथ लिए पैनी तलवार।।

टेसू लिए बीर कौ रूप, वे हैं बुन्देलखंड के भूप।

उनकी अजब निराली शान, भागें नर या हों शैतान।।

इसलिए दैदो इनकी चैथ, चाहे थोंड़ी ही या भौत।

इससे बे टकराते पामर, जिनकी खड़ी सामने मौत।।

इस प्रकार एकत्र किया गया- अन्न-धन, शरद पूर्णिमा के दिन वीर ’टेसू’ और ’झींझिया’ सुन्दरी के विवाह के उपलक्ष में आयोजित प्रीतिभोज पर व्यय होता है। ऐसा लगता है कि यह उत्सव बच्चों के भावी जीवन की तैयारी सिखाने का पर्व है।

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