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बुंदेलखंड के बाँदा जनपद में स्थित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग विश्वकला धरोहर के लिए अनुपम कृति

 

उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में स्थित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग विश्वकला धरोहर के लिए अनुपम कृति है। इस दुर्ग की गणना चन्देलों के 8 प्रमुख दुर्गों में की जाती है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित यह दुर्ग एक सजग प्रहरी के रूप में चिरकाल से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। समुद्र तल से 375 मीटर ऊंचाई पर 90 डिग्री पर खड़ी इसकी दीवारें आज भी कारीगरों को विस्मृत करती हैं।

दुर्ग का मुख्य प्राचीर 25-30 मीटर नींव पर 30-35 मीटर ऊंचा शीर्ष में 8 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर लंबा चट्टानों व पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर अथवा चूने के जोड़ से बनाया गया है। दुर्गीकरण के पूर्व कालिंजर तपस्या स्थल, तीर्थ स्थल एवं आत्म साधना का केन्द्र था। इसकी महत्ता वेदों, महाकाव्यों, पुराणों, के साथ-साथ बौद्ध, जैन एवं अन्य अनेक साहित्य कृतियों, आख्यानांे व लोक कथाओं में वर्णित है। यहां कालिंजर और शिव एक-दूसरे के पूरक एवं पर्याय हैं। अभिलेखों में इसे कालिंजर, कालिंजराद्रि, कालंजरगिरि एवं कालिंजरपुर आदि नामों से तथा शिव (नीलकण्ठ) के अधिवास के रूप में सुविख्यात कहा गया है।

इस दुर्ग की सामरिक महत्व के कारण प्राचीन भारत के अनेक राजवंश इसे अधिकृत करने के लिए लालायित रहते थे। इसे प्राप्त कर वे कालंजरपुरवराधीश्वर, कालिंजर गिरिपति एवं कालंजराधिपति की उपाधियां धारण करते थे। प्राचीन समय में यह जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। चन्देलों के बाद यह रीवा के सोलंकी राजवंश के अधीन रहा। इस पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेरशाह सूरी, हुमायूँ आदि ने आक्रमण किए पर विजय पाने में असफल रहे।

शेरशाह सूरी तो यहीं पर तोप का गोला लगने से मृत्यु को प्राप्त हो गया था। मुगल शासनकाल में अकबर ने इस पर अधिकार किया पर जल्द ही यह महाराजा छत्रसाल के आधिपत्य में आ गया। अंग्रेजी शासन में इस पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया। स्वतन्त्रता के बाद इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान कर इसे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया।

कालिंजर दुर्ग (Kalinjar Fort)

भारत के इस बेजोड़ किले की प्रशंसा मुस्लिम साहित्यकारों ने सिकन्दर की दीवार कहकर की है। कालिंजर दुर्ग का जितना सामरिक एवं प्रतिरक्षात्मक महत्व था उससे कहीं अधिक यह वास्तु शैलवास्तु एवं कला केन्द्र के रूप में है। ‘कालिंजर’ पर शोध कार्य कर रहे वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी, विजय कुमार जी एवं बुन्देलखण्ड न्यूज डॉट कॉम के श्याम जी निगम बताते हैं कि चित्रकूट तथा खजुराहो आने वाले तमाम देशी-विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में कालिंजर के अजेय दुर्ग को देखने आते हैं।

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