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बुंदेलखंड पर रहेगी सभी की नजर, हर पार्टी की है कुछ खास तैयारी



बुंदेलखंड. शहर के चुनावी इतिहास में हर सरकार ने बुंदेलखंड से पलायन रोकने का प्रयास किया है. यहां पर विभिन्न सरकारों की ओर से भरपूर पानी मुहैया करवाने के जो वादे किए गए वे वादे कभी धरातल पर साकार नहीं हो सके. पानी की समस्या को दूर करने के लिए कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा सरकार ने हजारों करोड़ रुपये की लागत से कई सिंचाई और पेयजल परियोजनाओं की शुरुआत की. लेकिन समय बीतने के साथ साथ सिंचाई और पेयजल परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के ग्रहण ने कभी भी परियोजनाओं को बुन्देलखण्ड में पूरा ही नही होने दिया.

ऐसे में साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल कर भाजपा सत्ता पर काबिज हुई. तो यहां एक बार फिर से हलचल शुरू हुई. यूपी और केंद्र सरकार ने साझा प्रयास करते हुए बुन्देलखण्ड में एक बार फिर से हजारों करोड़ की लागत से सिंचाई और हर घर नल से जल, केन बेतवा लिंक परियोजना पर काम करना शुरू किया.


भाजपा के वादों पर विश्वास करेगी जनता?

अब साल 2022 में एक बार फिर से विधानसभा चुनाव है. विधान सभा चुनाव के लिए मैदान सज चुका है. उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के द्वारा शुरू की गई सिंचाई और पेयजल परियोजनाओं के सफल होने के लगातार दावे कर रही है. लेकिन बुंदेलखंडवासियों के पिछले व्यवहार पर नजर डाली जाए तो यहां हर चुनाव में हमेशा सत्ता परिवर्तन नजर आता है. इसे जनता का अविश्वास कहें या मजबूरी, सत्ता में मौजूद पार्टी को सीट से हाथ धोना पड़ता है. ऐसे में अब भाजपा के लिए यह कड़ी परीक्षा है. वह लगातार अपनी परियोजनाओं के सफल होने के दावे कर रही है. क्या भाजपा एक बार फिर से बुंदेली जनता को विश्वास में ले सकेगी? क्या वे अपने किए कार्यों से यहां के लोगों को संतुष्ट कर पाएगी? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजे बताएंगे.

मौजूदा उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के उत्तर प्रदेश में साल 2017 में सत्ता संभालने के बाद क्या बुन्देलखंड में पलायन रुका? पेयजल की समस्या किस हद तक दूर हुई? इसका बुन्देलखण्ड की जनता मूल्यांकन कर साल 2022 में क्या दोबारा भाजपा पर ही भरोसा जताएगी या फिर उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से सत्ता परिवर्तन होगा? शायद यही कारण है कि भाजपा इस क्षेत्र के लिए खास चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है.


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