MP में बिजली कटौती के दिन आने वाले हैं!:खपत सामान्य, फिर भी गांवों में कट रही बिजली; ऐसे हालात क्यों, मई-जून में क्या होगा?

 मध्यप्रदेश बिजली संकट की ओर बढ़ रहा है। मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने 22,000 मेगावाट बिजली का एग्रीमेंट किया है, लेकिन प्रदेश में जितनी खपत है, उतनी बिजली भी नहीं आ रही। जरूरत 12 हजार मेगावाट की है। मिल रही है 10 हजार मेगावाट। 2 हजार मेगावाट की कमी पूरी करने के लिए ग्रामीण इलाकों में अघोषित कटौती की जा रही है। यह तब है, जब प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली खपत भी नहीं हो रही है। अक्टूबर-नवंबर में खपत 16,000 मेगावाट तक पहुंच जाती है। फिर संकट क्यों है? क्या मई तक बिजली संकट और गहराएगा? शहरों में भी अघोषित बिजली कटौती होने लगेगी? ये जानने से पहले जानते हैं कि आखिर कटौती की नौबत क्यों आन पड़ी?



कटौती की तीन वजह

प्रदेश में सिंचाई के साधन बढ़े हैं। जिससे गर्मी में बड़े पैमाने पर सब्जी और उड़द-मूंग की खेती होने लगी है।

कोविड काल में दो साल उद्योग-धंधे बंद रहे। इस साल छोटे कुटीर-उद्योग धंधे तेजी से काम कर रहे हैं।

प्रदेश तप भी बहुत रहा है। एसी-कूलर का यूज बढ़ गया है। शहर और कस्बों में बिजली की खपत बढ़ गई है।

पावर मैनेजमेंट का मिसमैनेजमेंट भी जिम्मेदार

MP पावर मैनेजमेंट कंपनी की कमान IAS विवेक पोरवाल के हाथ में है। कोरोनाकाल में शहर-कस्बे में बिजनेस एक्टिविटीज बंद थीं। तब भी बिजली की डिमांड गर्मी में 10 हजार मेगावाट से 12 हजार मेगावाट तक पहुंच रही थी। अप्रैल 2021 की बात करें तो डिमांड 10437 मेगावाट थी। अप्रैल 2022 में डिमांड 12200 मेगावाट पहुंच चुकी है। अब कोविड से उबरने पर उद्योग-धंधे फिर शुरू हो चुके हैं। बिजली की डिमांड बढ़ना भी तय था, लेकिन MP पावर मैनेजमेंट कंपनी इसका अंदाजा ही नहीं लगा सकी।

इन चार वजहों से गहराया बिजली संकट

MP पावर जनरेटिंग कंपनी को थर्मल प्लांट्स चलाने के लिए रोजाना 12.5 रैक कोयला चाहिए। 8.6 रैक कोयला ही मिल रहा है। औसतन 1 रैक में 4 से 5 हजार मीट्रिक टन कोयला ढुलाई होती है।

पावर मैनेजमेंट कंपनी ने प्रदेश के हिस्से की 1005 मेगावाट बिजली तो गुजरात और महाराष्ट्र में बांट दी। कंपनी के यह कहने पर कि हमें बिजली की जरूरत नहीं है। ऊर्जा विभाग ने NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड- यह केंद्र सरकार का बिजली बोर्ड है। इसकी प्रदेश की बिजली में हिस्सेदारी होती है) की खरगोन की 330 मेगावाट बिजली महाराष्ट्र, शोलापुर की 295 व मोहदा की 380 मेगावाट बिजली गुजरात को दे दी। पूरी गर्मी यानी 30 जून तक MP के हिस्से की बिजली दोनों प्रदेश में जाती रहेगी।

MP पावर मैनेजमेंट कंपनी ने 22 हजार मेगावाट बिजली को लेकर एग्रीमेंट किया है। यह बात अलग है कि इतनी बिजली प्रदेश को मिल ही नहीं रही। ऊपर से कंपनी ने मार्च के 31 दिन में 33 करोड़ यूनिट बिजली बेच भी दी। कंपनी हर साल मार्च से अगस्त-सितंबर तक बिजली पावर एक्सचेंज में बेचती है। 1 यूनिट बिजली की कीमत 10 से 12 रुपए कंपनी को मिली। 1 किलोवॉट (1000 वाट) प्रति घंटा का कोई इलेक्ट्रिकल उपकरण 1 घंटे इस्तेमाल करते हैं, तो उससे 1 यूनिट बिजली खपत होती है। 1 मेगावाट में 10,00,000 वाट होते हैं।

मार्च के 31 दिन में कंपनी ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा को 5 करोड़ यूनिट बिजली दी है। प्रदेश में बिजली की सबसे ज्यादा खपत रबी सीजन में होती है। डिमांड 16 हजार मेगावाट तक पहुंच जाती है। रबी सीजन के लिए कंपनी पावर बैकिंग करती है। यानी रबी के मौसम में कंपनी इतनी ही बिजली वापस ले लेगी। रबी की फसल सामान्यतः अक्टूबर-नवम्बर में बोई जाती है। गेहूं, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं।


साभार- भास्कर


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ