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Hindenburg Fraud Report: फैक्ट और फिक्शन में अंतर समझिए

सबसे पहला सवाल, ये हिंडेनबर्ग रिसर्च क्या है? क्या यह कोई फाइनेंसियल संस्था है? तो जवाब है नहीं, क्या यह कोई रेगुलेटरी संस्था है? नहीं, क्या यह कोई कानूनी या सरकारी संस्था है? नहीं, क्या यह कोई चार्टेड अकॉउन्टेंट्स के लोगों का समूह है? तो इसका भी जवाब है नहीं। तो फिर आखिर ये बला है क्या जिसने पिछले कुछ दिनों से भारत में  तहलका बचा रखा है? तो इसका सीधा सा जवाब है कि यह एक ऐसी कथित रिसर्च फर्म है, जो दो साल में तैयार की हुई रिपोर्ट, एक ख़ास मौके पर निकालती है और एक दूसरे देश का बड़ा कॉर्पोरेट ग्रुप उसके निशाने पर होता है। इसकी रिपोर्ट का सीधा असर इन्वेस्टर्स सेंटीमेंट पर पड़ता है, और टारगेट किये गए कॉर्पोरेट ग्रुप को महज दो रोज के अंदर लगभग 4 लाख करोड़ के मार्केट कैप का नुकसान हो जाता है। ग्रुप का नाम आप समझ गए होंगे। 




आखिर ये हिंडेनबर्ग रिसर्च क्या है?

गूगल करेंगे तो पता लगेगा कि यह एक शार्ट सेलिंग करने वाली एक कथित इन्वेस्टर एक्टिविज्म वाली छोटी सी कंपनी है। जिसमें 2020 तक 5 कर्मचारी हुआ करते थे, और गूगल तो आज भी इतने ही कर्मचारी दिखा रहा है।  

आसान भाषा में समझें तो यह कंपनी शार्ट सेलिंग की टैक्टिस अपना कर कई कंपनियों को ऐसे ही चूना लगा चुकी है। ज्यादातर कंपनियों को 80-90% मार्केट कैप का नुकसान हुआ है। खास बात यह है कि बेहद कम लोग जानते होंगे कि यूएस सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) एंड डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस इस तरह की शार्ट सेलिंग करके पैसे कमाने वाली कंपनियों के नेक्सस की जांच कर रही है। जिसमें हिंडेनबर्ग भी एक है। 

दरअसल यह संस्था इन्वेस्टर एक्टिविज्म के नाम पर टारगेट अटैक करती है, और शेयर बाजार हमेशा सेंटीमेंट्स पर चलता है। कुछ भी नेगेटिव ख़बर आने पर बिकवाली शुरू हो जाती है। दो साल से रिपोर्ट बन रही थी.. लेकिन रिलीज़ होती है अदाणी के FPO से बिल्कुल पहले। समझदार के लिए इशारा काफी है कि ऐसा क्यों किया गया होगा। 

अब अदाणी के बारे में कहा जा रहा है कि उनके स्टॉक्स ओवर वैल्यूड हैं लेकिन स्टॉक्स ओवर वैल्यूड होना किसी प्रकार का सकाम होता है ये किसने कहा? मोनोपोली करना अगर चोरी है तो गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, और एप्पल के लिए आपके क्या विचार हैं, जो ऐसे मामलों में कई बिलियन पैनलिटी भर चुके हैं लेकिन अदाणी पर आज तक कोई एंटी ट्रस्ट जैसे केस नहीं लगे हैं।

साफ़ तौर पर भारत और भारतीय उद्योगपतियों की छवि बिगाड़ने की कोशिश

भारत विश्व में पश्चिम के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है। तो इस प्रकार के हमले होना भी जायज है। आप इसे एक हाइब्रिड वारफेयर के रूप में भी समझ सकते हैं। जिसका शिकार खुद वो भी हो सकते हैं जिनको अभी इस खबर पर बहुत आनंद आ रहा है। 

किस्सा:

इजराइल का एक युवक नैट एंडरसन, इजराइल में एंबुलेंस चलाता था और बेहद गरीबी में जिंदगी जीता था। 

वह बेहतर जिंदगी की तलाश में अपने चाचा के पास न्यूयॉर्क आ गया। न्यूयॉर्क में यहूदी लॉबी शेयर बाजार ट्रेडिंग, मेटल ट्रेडिंग, हीरे और दूसरे कीमती पत्थर तथा एंटीक चीजों के व्यापार में एकाधिकार है। एंडरसन अपने एक रिश्तेदार के शेयर बाजार की फॉर्म में नौकरी करने लगा और धीरे-धीरे उसने शेयर बाजार की बारीकी को जान लिया। फिर वह समझ गया कि जब किसी कंपनी का शेयर गिर जाए तब उसे खरीद लेना सबसे बड़ा फायदा होता है। शेयर बाजार की भाषा में इसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं। 

उसके बाद एंडरसन ने एक फर्म बनाई, जिसका नाम हिंडेनबर्ग रखा गया। उसने हिंडेनबर्ग नाम भी एक ऐतिहासिक आपदा पर रखा, जिसमें एक हीलियम से भरा एयरशिप क्रैश हो गया था और 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे। 

फिर हिंडेनबर्ग ने अमेरिका में कई कंपनियों के बारे में फर्जी रिपोर्ट प्रकाशित की। उसने कंपनी के फाइनेंसियल चीजों में काफी गड़बड़ी साबित की और फिर रिपोर्ट आने के बाद जब उस कंपनी के शेयर गिर जाते थे तब एंडरसन उस कंपनी के शेयर काफी खरीद लेता था और कुछ समय के बाद जब शेयर बढ़ जाते तब उन्हें बेचकर काफी मुनाफा कमाता था।

यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि हिडेनबर्ग फॉर्म जानबूझकर सिर्फ शार्ट सेलिंग के लिए कंपनियों की नेगेटिव रिपोर्ट प्रकाशित करती है ताकि उसके शेयर गिर जाएं और बाद में इस कंपनी के डायरेक्टर लोग और उनके रिश्तेदार उस शेयर को खरीद लेते थे। 

अमेरिका में हिंडेनबर्ग फार्म के मालिक एंडरसन को 15 दिनों तक हिरासत में भी रहना पड़ा था। 

अब नरेटिव आप सेट करिये और बताइये कौन सही है और कौन गलत। लेकिन सच हमेशा सच ही रहेगा।

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