बांदा,दलहनी फसले मानव जीवन के साथ-साथ प्रकृति व पर्यावरण के सभी घटको के लिए महत्वपूर्ण है। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने में पंक्षियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। दलहन फसलों के उत्पादन से पंक्षियों की संख्या में बृद्धि होती है। संख्या में बृद्धि का मुख्य कारण कीड़े हैं, जो पंक्षियों का आहार होता है दलहनी फसलों पर ज्यादा पाये जाते हैं। कीडों द्वारा फसलों को हानि पहुँचाने से रोकने के लिये पंक्षियाँ इन्हें खा जाते है, जिससे कृषकों को रासायनों का प्रयोग नहीं या कम करना पड़ता है।यह बातें कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरेन्द्र प्रताप सिंह जी ने विश्व दलहन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कही।
उन्होने कहा कि ऐसे में रासायनों के प्रयोग से पर्यावरण प्रदुषित होने की संभावना कम हो जाती है। दलहनी फसल सभी के लिये कुछ न कुछ देता है। अनाज की माँग बढ़ने से दलहनी फसलों का क्षेत्रफल कम हुआ तथा प्रति व्यक्ति मात्रा 60 ग्राम से 35 ग्राम तक आ गया। चना फसल के उत्पादन में क्रांति आयी है। पूरे देश में दाल का बाजार मूल्य एक हो सके इसके लिये प्रयास किया गया। बुन्देलखण्ड दाल का कटोरा है, यहाँ की दलहनी फसलों की उन्नतशील प्रजातियां कृषि विश्वविद्यालय से निकले ऐसा प्रयास वैज्ञानिकों का है।
विश्व दलहन दिवस मे कृषि महाविद्यालय के छात्रों द्वारा दलहनी फसलों पर 23 छात्र-छात्राओं ने पोस्टर का प्रर्दशन किया। बांदा, जिले के विभिन्न जिलो से आये हुए किसान एवं एनआरएलएम की सखियो ने भी भाग लिया। विश्वविद्यालय के लगभग 36 छात्र-छात्राओं द्वारा दलहन के विभिन्न उत्पादों से खाद्य पदार्थ बनाया जो कि प्रमुख आकर्षण का केन्द्र था। प्रतिभागी छात्रों को पोस्टर एवं स्टाल के लिये प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार, प्रो. एन. के. बाजपेयी ने कहा कि गरीबों का मुख्य भोजन दाल एवं उससे बनी सामग्री होती थी। धीरे-धीरे हम एक बार पुनः उसी अवस्था में पहुँच रहे है। किसानों को अच्छा बीज मिल सके इसके लिये सभी को जागरूक होना आवश्यक है। कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा सीड हब परियोजना से कृषकों तक उन्नतशील बीज वितरित किया जाना एक सराहनीय प्रयास है।
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