बुंदेलखंड के विंध्य पर्वत की श्रेणियों का तलहटी में बीना- कटनी रेल मार्ग पर दमोह से 17 किलोमीटर दूर स्थित बांदकपुर ग्राम में धार्मिक सिद्धक्षेत्र जागेश्वर धाम स्थित है। मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग प्रतिष्ठित है जिसके दर्शन तथा पूजन से श्रद्धालु भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अत: यह स्थल सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र को राम की दक्षिण यात्रा से जोड़ते हुए 1:30 सदीपुर में रचित भैरव प्रसाद नेमा ने अपने जागेश्वर रहस्य नामक ग्रंथ में एक दोहे में लिखा था।
आज से लगभग 325 वर्ष पूर्व मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर जिनका मुख्यालय दमोह था। एक दिन रथ यात्रा करते हुए बांदकपुर आए और बर्तमान इमरती कुंड में स्नान कर पूजन में मग्न थे कि भगवान शिव जी ने दर्शन दिए और कहा कि वटवृक्ष के पास जहां घोड़ा बंधा हुआ है। उसके नीचे उत्खनन करके मुझे भूमि से ऊपर लाने का प्रयास करो।
ध्यान समाप्त होने पर बालाजी राव ने उस स्थल की खुदाई कराई जहां काले भूरे पत्थर का शिवलिंग दृष्टिगत हुआ। कहा जाता है कि 30 फीट तक खुदाई करने पर भी शिवलिंग का अंत नहीं दिखाई दिया। तब खुदाई रोक दी गई। फिर आसपास 12 फीट की नींव देकर मंदिर का निर्माण कराया गया। गर्भ स्थल में प्रवेश करते ही यह स्पष्ट दिखता है कि इस मंदिर में मूर्ति का स्थान ठीक नीव के बाहर की भूमि की गहराई पर स्थित है
भगवान जागेश्वर की मूर्ति जमीन की सतह पर है। शिवलिंग को भेंट करते समय बाद दोनों बाजुओं में नहीं समाता। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। पूर्व द्वार से जागेश्वर मंदिर से लगभग 100 फीट की दूरी पर पश्चिम की ओर जननी मां पार्वती की मूर्ति इस अद्भुत ढंग से विराजमान है कि उनकी दृष्टि सीधी आकर भगवान जागेश्वर की मूर्ति पर पड़ती है। इसके बीच में ही विशाल नंदी मठ स्थित है। नंदी गढ़ ऊंचाई में होने पर भी दोनों के दर्शन स्पष्ट दिखते हैं।
नंदीमठ के पास है अमृत कुंड, इमरती बावली है जिसमें ट्रस्ट कमेटी ने सीड़िया लगा दी हैं एवं विद्युत पंप लगाकर ऊपर पानी की व्यवस्था की है। इस बावड़ी में गंगोत्री, जमनोत्री, नर्मदा नदी आदि पवित्र नदियों का जल यात्रीगण छोड़ जाते हैं। यह पवित्र जल ही शिवलिंग पर चढ़ा कर गंगा जली में घर ले जाते हैं। यात्रीगण गंगाजल के साथ कांवर भी चढ़ाते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु यात्रीगण श्रद्धालु भक्तगण हल्दी के हाथ दीवाल पर हाथ लगाते हैं और पूर्ति होने पर पुन: आते हैं। कावर के यात्रीगण नर्मदा तट से जल लाकर श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव को चढ़ाते हैं। मंदिर परिधि में शिव पार्वती मंदिर के अलावा श्री भैरवनाथ मंदिर, राम लक्ष्मण जानकी मंदिर, हनुमान मंदिर, सत्यनारायण मंदिर भी हैं। यहां यज्ञ भी होता है जिसके लिए पूर्व में अस्थाई यज्ञ मंडप बनाया जाता था असुविधा की दृष्टिगत रखकर वर्ष 1955 में ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव डॉक्टर शंकरराव मोझरकर ने जयपुर के कारीगर बुलाकर स्थायी यज्ञ मंडप का निर्माण कराया था।
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