ललितपुर। रेलवे स्टेशन के पास करीब पचास साल पुरानी इमारत में जीआरपी थाने का संचालन हो रहा है। इस इमारत की बैरक व मालखाने की हालत भी खस्ता है, तो वहीं इमारत में माल मुकदमा की फाइलें भी सुरक्षित रखने के लिए जगह नहीं है।
रेलवे स्टेशन पर जब आरपीएफ चौकी से थाना बना, तो उसे नई इमारत मिल गई। लेकिन, जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) के लिए रेलवे स्टेशन पर कोई सुविधा नहीं है। जब जनपद में जीआरपी चौकी हुआ करती थी, तो वहां पर दो कमरों की जगह थी, इसके बाद वर्ष 2002 में ललितपुर स्टेशन पर जीआरपी थाने की स्थापना हो गई। थाने में सरकार द्वारा स्टाफ की तैनाती तो कर दी गई। लेकिन, इमारत चौकी वाली ही मिली।
आपसी सहयोग से पुलिस कर्मियों द्वारा एक पक्का कमरा तैयार किया गया, इसके अलावा आज भी जीडी कार्यालय के लिए पुराने कमरा ही है। साथ ही बैरक व मालखाने की स्थिति तो काफी खराब है। माल मुकदमा रखने के लिए भी थाने में सुरक्षित जगह नहीं है। साथ ही स्टाफ को बैठने के लिए भी पर्याप्त स्थान नहीं है। थाने में प्रभारी निरीक्षक के अलावा तीन उपनिरीक्षक, 45 सिपाइयों की तैैनाती है।
इसके अलावा बरसात के समय तो थाने की हालत तो काफी खराब हो जाती है। हालांकि थाना परिसर को दलदल में तब्दील होने से बचाने के लिए यहां पर पुलिसकर्मियों ने आपसी सहयोग व स्थानीय रेलवे अधिकारियों की मदद से पेवर ब्रिक्स लगवाए। आलम यह है कि यहां पर रेलवे द्वारा जीआरपी थाना पुलिस के सुविधा मौजूद नहीं है।
45 किलोमीटर के एरिया में है जीआरपी का कार्यक्षेत्र
जीआरपी का कार्यक्षेत्र 45 किलोमीटर एरिया में फैला हुआ है। साथ ही थाना के अधीन 12 रेलवे स्टेशन आते हैं। भोपाल-झांसी लाइन पर धौर्रा से माताटीला तक कार्य क्षेत्र हैं, तो वहीं टीकमगढ़ लाइन पर उदयपुरा तक जीआरपी का कार्य क्षेत्र आता है। सबसे ज्यादा दिक्कत तो तब आती है, जब एक ही समय अधिक लोगों की रवानगी होती है, तो सिपाहियों को थाने के बाहर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
जीआरपी थाने की इमारत काफी पुरानी है, इसके लिए नई इमारत के विषय में आलाधिकारी ही कोई निर्णय ले सकते हैं।
साभार : अमर उजाला
0 टिप्पणियाँ