किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले को दोष, न सुनय बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के लगाम। छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। …. जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय।. . . कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। . . . . .।
एक था राजा, उसके चार रानियाँ थीं, उनके लड़के नहीं होते थे। एक दिन एक बाबा आया और राजा ने उनसे संतान -प्राप्ति का वरदान मांगा। तो बाबा ने राजा को आम के चार फल दिए और बोला चारो रानियों को एक-एक आम खिला देना।
राजा ने चारों रानियों को एक-एक आम दे दिया। अब तीन रानियों ने तो तुरन्त अपने आम खा लिए लेकिन चौथी रानी ने आम को एक जगह रख दिया। इतने में एक नेऊरा आया और आम को सूँघ गया। जब थोड़ी देर बाद रानी ने आम खा लिया ।
कुछ दिन बाद तीनो रानियों के लड़के पैदा हुए। एक रानी को नेवला पैदा हुआ। अब घर में लड़कों की तो कद्र होती लेकिन उस नेवला की कोई कदर न करता। अब जब लड़के बड़े हुए तो नौकरी करने के लिए बाहर जाने लगे।
नेवला अपनी माँ से बोला कि मैं भी अपने भाईयों के साथ जाऊँगा। तो उसकी माँ लड़कों से बोली कि लाला, नेवला कह रहा है कि मैं भी साथ जाऊँगा। लड़के बोले इसको कहाँ साथ ले जायेंगे, हम लोग तो नौकरी करेंगे, ये क्या करेगा? और वे लड़के चल दिए तो नेवला नहीं माना, वह भी पीछे पीछे सरकता हुआ चला गया।
अब जब लड़के कुछ दूर पहुँचे तो एक बेरी का पेड़ मिला, जिसमें खूब बेर लगे हुए थे। वे लड़के आपस में कहने लगे कि अगर नेवला को साथ लाये होते तो पेड़ पर चढ़कर बेर तोड़ता। तो नेवला पीछे से बोला, मैं हूँ भईया। भाईयों ने कहा, ठीक है, चढ़ जा पेड़ पर।
अब नेवला बेरी के पेड़ पर चढ़ गया और वह पके-पके बेर खाता जाता और कच्चे-कच्चे नीचे गिराता जाता जिससे उन तीनों भाईयों को बड़ी गुस्सा आई। उन्होंने पेड़ के चारों ओर झाँखर (कंटीले झाड ) लगा दिया, जिससे कि नेवला उसी में फंसा रह जाय और आगे चल दिए।
लेकिन नेऊरा किसी तरह झाोँखर फॉदकर फिर पीछे-पीछे हो लिया। थोड़ी दूर बाद एक आम का पेड़ मिला तो लड़के फिर बोले कि अगर नेवला को लाये होते तो आम तोड़वा कर खाते। नेऊरा फिर पीछे से बोला, मैं हूँ भईया। भाईयों ने फिर कहा, चढ़ जा पेड़ पर और पके-पके आम नीचे गिराना।
अब नेऊरा पेड़ पर चढ़ गया और फिर उसी तरह पके-पके आम खा जाता तथा कच्चे-कच्चे नीचे गिरा देता। जिससे भाईयों ने फिर उसे झोँखरों से रुंध दिया। लेकिन नेवला फिर किसी तरह निकलकर उनके पीछे हो लिया।
अब जब भाईयों ने देखा कि यह फिर पीछे-पीछे आ रहा है तो कुछ दूर पर उनको एक धोबी मिला, उन्होंने धोबी से पूछा कि भईया नौकर रखोगे? धोबी ने कहा, हाँ रखेगे। तो वे बोले, ये मेरा नेवला रख लो और ये जो भी छोटा-मोटा काम करे, वैसे हमें वापस आने पर पैसा दे देना। अब नेऊरा को धोबी के पास नौकर रखकर वे लड़के आगे बढ़ गये। नेऊरा धोबी के गधे चरा लाता और उसके लड़के -बच्चों को खिलाता रहता।
अब आठ-दस साल बाद नेऊरा के भाईयों की चिट्ठी धोबी के पास आई कि भाई हम इस दिन आ रहे हैं, हमारे नेवला का जो पैसा हो, उसे रखे रहना, हम आकर ले लेंगे। उसी रात धोबी का लड़का हगासा (संडास लगना) हुआ तो धोबिन ने कहा, ऐ नेवला, जा लड़के को हगा ला।
अब नेऊरा उस लड़के को घर से बाहर लाया और उससे बोला कि देख हगना तो मूतना नहीं और यदि मूतना तो हगना नहीं। नहीं तो मैं तुझे जान से मार डालूँगा। अब धोबी का लड़का बेचारा मारे डर के ऐसे ही लौट आया। थोड़ी देर बाद फिर उसने अपनी माँ को जगाया। उसकी माँ ने झललाकर नेवला से कहा कि नेवला जा इसे हगा ला और अगर न हगे तो नासकटे को वहीं गाड़ देना, मुझे रात में बार- बार तंग कर रहा है।
अब नेऊरा लड़के को बाहर लाया और उससे बोला कि देख तू अभी बता दे कि तेरे मॉ-बाप ने सोना-चॉदी कहाँ छुपा रखा है, नहीं तो मैं तुझे इसी जगह गाड़ दूँगा। अब धोबी के लड़के ने डर के मारे बता दिया कि जहाँ अम्मा-बप्पा सोते हैं, वहीं पलंग के नीचे चार घड़े गड़े हैं।
अब नेऊरा ने लड़के को पुचकार कर सुला दिया और रात को चुपचाप पलंग के नीचे खोद-खोदकर चारों घड़ों से सोना- चांदी , पैसा निकाल कर धोबी की एक कमजोर गदहिया के पेट में भर आया।
अब जब सुबह उसके भाई घोड़ों में चढ़कर आ गये और बोले, धोबी, हमारे नेऊरा का जो होता है, उसे दो। उन्हें नेऊरा को अपना भाई कहने में शर्म आती थी, क्योंकि वे तो ठहरे राजा के लड़के। धोबी बोला, सरकार, कल तो आपकी चिट्ठी आई है, इतनी जल्दी मैं पैसे का इन्तजाम तो नहीं कर पाया। हाँ आपको इन गदहियों में जो अच्छी लगे छाँट लीजिए। अब नेऊरा उसी मरी-सी गंदहिया को लेने को तैयार हुआ, जिसके पेट में उसने सोना-चॉदी भरा था।
धोबी बोला, अरे नेवला , अच्छी-अच्छी कोई ले ले। नेवला बोला, नहीं मैं यही लूगा। अब उसके भाईयों ने भी कहा कि धोबी भाई, यही दे दो, तुम्हारा दोष नहीं है, जब इसे यही पसन्द है तो दे दो। अब नेवला उसी कमजोर गदहिया को लेकर घर चल दिया। उसके भाई तो घोड़ों में थे, अतः वे जल्दी-जल्दी घोड़े दौड़ाकर आगे निकल गये। नेवला बेचारा गदहिया की पीठ में बैठकर धीरे-धीरे आ रहा था। क्योंकि गदहिया के पेट में उसने सोना-चॉदी भर दिया था ।
गदहिया का पेट फूला हुआ था, इसलिए वह और धीरे-धीरे चल रही थी। अब जब वे लड़के घर पहुँचे तो नेवला की माँ ने पूँछा, लाला मेरा नेवला भी आ रहा है? लड़कों ने कहा, हाँ, आ रहा होगा पीछे, मरी गदहिया लिए धीरे-धीरे आता होगा। अब नेऊरा जब शाम को घर पहुँचा तो आते ही बोला, अम्मा, अगवार (आगे) लीप, पिछवार (पीछे) लीप, धोबी का मुगरा(डंडा) लाव।
उसकी माँ ने जल्दी से ऐसा ही किया। अब नेऊरा ने मुगरा से गदहिया को कूटना शुरू कर दिया तो उसके पेट से झर-झर करके सोना-चॉदी , पैसे गिरने लगे। गदहिया को मारते-मारते नेवला ने उसके पेट से सब पैसा निकाल लिया और गदहिया जब मर गयी तो नेवला उसे बकरे का मांस बताकर गॉावभर में बेंच आया।
इधर घर में नेऊरा की माँ ने सोना-चॉदी , पैसे सब मिटटी का बड़े से वर्तनों में भर लिए, कुछ इधर-उधर भी गिर गये। अब सुबह जब उसकी जेठानी आयी तो उसने इधर-उधर पैसे पड़े देखा तो पूँछा कि क्यों री, तेरा नेवला बहुत पैसा कमाकर लाया है क्या? नेऊरा की माँ ने बताया कि हॉ जीजी, एक गदहिया लाया था, उसी को कूटा था, जिससे थोड़ा-बहुत पैसा निकल आया है।
अब उसकी जेठानी अपने घर पहुँची तथा उन तीनों लड़कों से बोली, क्यों रे, तुम लोगों ने अपने-अपने घोड़ों को क्यों नहीं कूटा? नेवला ने अपनी गदहिया को कूट- कूटकर पैसे निकाले है। अब लड़कों की माताओं ने नेऊरा की माँ से पुँछा कि तुम्हारा नेवला कैसे आया था? उसने बताया कि गदहिया पर द्वार में आकर बोला था, अम्मा, अगवार लीप, पिछवार लीप, धोबी का मुगरा लाव।
अब तीनों लड़के अपने-अपने घोड़ों में बैठकर कुछ दूर गये तथा वापस आकर उन्होनें अपनी माताओं से वैसा ही करने को कहा और अपने-अपने घोड़ों को मुगरा से कूटने लगे। लेकिन उन घोड़ों के पेट में पैसा तो भरा नहीं था अंत में वे लीद छोड़ते छोड़ते मर गये पर पैसा नहीं निकला।
अब उन्होंने घोड़ों का मांस बेचने के लिए नेवला से पुँछा तो नेऊरा ने कहा, जाओ चिल्लाकर कहना, घोड़े का मांस ले लो। अब उन तीन लड़कों ने वैसा ही कंहा तो वे तीनों सिपाहियों द्वारा पकड़ लिए गये कि कहीं घोड़े का मांस बिकता है? अब उन लड़कों को पैसा देकर छुड़ाया गया और इधर नेऊरा और उसकी माँ आराम से रहने लगे।
Source: Bundeli Jhalak
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