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शंकर और घरघालन - बनाफ़री लोक कथा

किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले  को दोष, न सुनय  बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस  और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के  लगाम। छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। …. जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय।. .. . . कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। . . . . .।


 


ऐसें ऐसें एक जगह दो भाई  शंकर और घरघालन रहते थे। बड़े का नाम शंकर था, छोटे का नाम घरघालन। शंकर बेचारा सीधा-सादा आदमी था और घरघालन बड़ा होशियार था। उन दोनों के पास साझे में एक भैंस थी, उसके लिए वे दोनों लड़ा करते थे। तो गाव वालों ने सुझाव दिया कि भाई लड़ते क्‍यों हो, बॉट क्‍यों नही लेते। उन दोनों ने भैंस को बॉट लिया।

अब घरघालन चालाक था , सो उसने कहा कि भइया, भैस के आगे का हिस्सा तुम ले लो और पीछे का हिस्सा मैं लिए लेता हूँ। अब बेचारा शंकर भैस के अगले हिस्से में उसका मुंह  होने के कारण उसे खिलाता-पिलाता और सुबह-शाम घरघालन बैठकर उसका दृध दुह लेता, क्योंकि भैस का पिछला थनो वाला हिस्सा उसे मिला था।

जब शंकर ने देखा कि मुझे तो भैस का दूध दुहने-खाने को मिलता ही नहीं, सिर्फ उसे खिलाता-पिलाता ही रहता हूँ तो उसने घरघालन से कहा, ले भइया ले, तू पूरी भैस ले ले, अब मैं जा रहा हूँ और वह तंग होकर घर छोड़कर चला गया।

अब शंकर दूसरे गाँव में एक बनिया के यहाँ नौकरी के लिए पहुँचा। तो बनिया ने उससे पूछा कि क्‍या लेगा? खाड़ा भर रोटी या पत्ता भर महेरी (दलिया)। शंकर ने सोचा कि पत्ता भर महेरी से क्‍या होगा, अतः वह खाड़ा भर रोटी रोज पर काम करने को राजी हो गया। लेकिन बनिया ने एक शर्त रखी कि यदि तू काम छोड़कर जायेगा तो मैं तेरी नाक-कान काट लूगा और यदि मैं तुमसे काम छुड़वाऊँ तो तुम मेरी नाक-कान काट लेना।

अब शंकर दिन भर बनिया के यहाँ खूब काम करता और शाम को बनिनिया उसे खाड़ा-भर रोटी दे देती, जिससे वह भूखा रह जाता। कुछ दिन बाद बेचारा शंकर मारे भूख के बहुत दुबला-पतला हो बिल्कुल कमजोर हो गया, फिर भी बनिया उससे जी तोड़ मेहनत करवाता। अब एक दिन हार कर उसने बनिया से कहा कि भइया लो, मेरे नाक-कान काट लो, अब मैं अपने घर जाऊँगा। बनिया ने नौकरी की शर्त के अनुसार उसके नाक-कान काट लिए और वह वापस अपने घर चला आया।

अब शंकर जब घर पहुँचा तो उसके छोटे भाई घरघालन ने उसका हाल देखकर पूछा कि सब क्‍या करा आये? तो शंकर ने पूरा हाल कह सुनाया कि फलां गाँव  के बनिया ने ऐसा हाल किया है। अब घरघालन बोला, ठीक है, अब तू भैस दुह -खा और मैं जाता हूँ उसके यहाँ।

अपने बड़े भाई शंकर से बनिया के गाव का पता पूछकर घरघालन उसी बनिया के यहाँ पहुँचा, जिसे मुफ्त में काम करवाने की लत पड़ गयी थी। अतः बनिया ने घरघालन को भी बुलाकर पूछा कि खॉड-भर रोटी में रहोगे या पत्ता भर महेरी में। घरघालन ने सोचा कि खॉड भर रोटी में क्या होगा? अत: वह पत्ता भर महेरी में काम करने को राजी हो गया।

बनिया ने उसके सामने भी वही नाक-कान काटने की शर्त। रखी, जिसे घरघालन ने स्वीकार कर लिया। अब दिन भर थोड़ा बहुत काम करने के बाद, शाम को खाने के समय घरघालन एक बड़ा सा पुरइन (कमल) का पत्ता तोड़ लाया। बनिनिया शंकर की ही तरह उसे सीधा-साधा जानकर छिउली टिसूई के छोटे से पत्ते में एक चमचा महेरी लेकर आयी। तो घरघालन ने कहा, पत्ता भर महेरी की बात तय हुई थी, अब यह पत्ता चाहे जिसका हो, मैं इस पुरइन के पत्ते भर महेरी रोज लूँगा।

बनिनिया, मन-मसोश्नकर रह गयी। उसने सोचा कि यह चालाक है। अब बनिनिया को पूरी बटोई भर महेरी पकानी पड़ती जिसे वह पुरइन के बड़े – से पत्ते में डालकर भर पेट खाता और जो, बचती उसे कुतिया को खिला देता। जिससे वह कुतिया वहाँ रोज़ आ जाती और उससे लहट गयी।

अब एक दिन खूब बरसात हुई और ओले भी पड़े तो; बनिनिया बोली कि घरघालन आज चूल्हा नहीं जल रहा है, जाकर कहीं से चैला (लकड़ी) फाड़ लाओ। अब घरघालन कुल्हाड़ी लेकर गया और खेती की जुताई-बुवाई के लिए जितने हल- बक्खर रखे थे उन सबको फाड़ लाया और बनिनिया को दे दिया। जिससे वह बहुत प्रसन्‍न हुई।

अब इसी तरह एक दिन बनिनिया बोली कि घरघालन जाओ जंगल से शिकार कर लाओ, आज शिकार खाने का मन है। तो घरघालन ने कहा ठीक है, चार रोटी बांध दो, मैं शिकार करके लिए आ रहा हूँ। अब वह रोटी लेकर अपने साथ जंगल में कुतिया को ले गया और उसे रोटी खिलाकर, बाद में काट-पीटकर ले आया तथा बनिनिया को दे दिया।

अब बनिनिया ने खुशी-खुशी उसको पकाया और दोनों बनिया-बनिनिया ने मिलकर खूब खाया। घरघालन को तो पत्ता भर महेरी से ही काम था। शिकार खाने के बाद जब हड्डिया बची तो बनिनिया तू-तू करके कुतिया को बुलाने लगी। तो घरघालन बोला कि तू-तू किसे कर रही हो, अभी खाया क्‍या है? बनिनिया सनक कर बोली, क्‍या तू कुतिया काटकर ले आया था। घरघालन ने कहा, और क्‍या, तुम्होरे लिए हिरना मारकर मैं कहाँ से लाता?

बनिनिया बोली, अच्छा चुप रहना, किसी से बताना नहीं। नहीं तो जाति-बिरादर वाले हमको बाहर कर देंगे। घरघालन बोला,मुझे क्या करना है, तुम लोग जानो। खाया तो तुम्हीं लोगों ने है, मैंने कौन खाया है?

अब जब अषाढ़ आया तो बनिनिया बोली कि घरघालन, जाओ खेत जोत आओ। तो घरघालन बोला कि पहले हल- बक्खर बनवाइए। बनिया बोला कि काहे क्या हो गये हल बक्खर , रखे तो होंगे?  तो घरघालन बोला कि चूल्हे में अभी तक क्या जलाते रहे हो? बनिनिया बोली कि काहे तू हल-बक्खर फाड़ लाया था क्‍या? उसने कहा, और नहीं तो क्या, कहाँ तुम्हारे लिए बबूल रखे है?

अब दोनों बनिया-बनिनिया चौकन्ना हुए कि लगता है यह शंकर का भाई है, हमसे बदला लेने आया है। बनिया ने किसी तरह से नये हल- बक्खर , बनवाकर उसे दिया और खेत में ले जाकर उससे कहा कि इसी कुड़ै-कुड़ जाना और इसी की सींध में कुड़ै-कुड़ आना और ऐसे ही खेत जोतते रहना। अब घरघालन उसी एक कुड़ से हल जोतते चला जाता और उसी से लौट आता। पूरा खेत ऐसे ही पड़ा रहा।

जब कुवार (अश्विन) में खेत बोने का समय आया तो बनिया बोला, घरघालन जाओ खेत बो आओ जाकर। अब घरघालन खेत बोने गया तो उसने बनिया से बताया कि इसमें तो हल ही नहीं चलता है। बनिया चौंका, उसने कहा, काहे चार महीने क्‍या करते रहे हो? तो घरघालन ने बताया कि आपने जैसे कहा था कि कुड़ै-कुड़ जोते रहना, मैंने वैसे ही जोता है। अब बनिया की खेती पड़ती पड़ गयी।

अब दोनों बनिया-बनिनिया परेशान रहने लगे। उन्होंने जान लिया कि यह शंकर का भाई है। अब यह हमारे नाक-कान काट के मानेगा। सो उन्होंने सलाह बनाई कि रात को घर छोड़कर कहीं भाग चलें और घर में ताला लगा देंगे। जब यह घर में ताला लगा देखेगा तो अपने आप चला जायेगा। फिर कुछ दिनों बाद वापस आकर रहने लगेंगे।

घरघालन सब कुछ बरामदे में पड़ा सुनता रहा, जब कि उन्होंने समझा था कि कहीं बाहर होगा। अब बनिनिया ने खूब खाने के लिए बनाया, जिसे एक बड़े से बक्से में भर लिया। रात को उन्होंने अपनी तैयारी पूरी कर ली और सोचा कि सुबह धुंधलके में निकल पड़ेंगे, अभी थोड़ा सो लें। जब दोनों सो गये तो घरघालन उनके बक्से में घुसकर बैठ गया।

अब जब सुबह होने को हुई तो बनिया जागा और बोला, उठ बनिनिया, चल जल्दी से भाग चले। बनिनिया ने तुरन्त बनिया के सिर पर बक्सा रखवा दिया और भागते चले जा रहे थे, मारे डर के कि कहीं घरघालन जागकर आ न जाया कुछ दूर चले तो बनिया का सिर काफी गरूवाया  (भारी)  तो वह बोला कि बहुत गरू बक्सा है, क्या बनाके रखा है? तो बनिनिया बोली, सब कुछ बना के रख लिया है, चार-छह दिन के लिए खाने को तो हो ही जायेगा।

अब बक्से के भीतर लेटे घरघालन को पेशाब लगा तो उसने पेशाब कर दिया, जो बनिया के सिर से होता हुआ उसके मुँह तक पहुँचा। तो बनिया बोला कि इसमें क्या रखा है? बड़ा नुनखर-नुनखर (नमकीन-नमकीन) लगा रहा है। बनिनिया बोली कि हो, उसमें तरकारी (सब्जी) रखी है, उसी का रसा टपकता होगा।

अब जब कुछ दूर पहुँचे, घर काफी पीछे छूट गया तो एक कुआ मिला। बनिया ने कहा कि चलो यही पर कलेवा कर लिया जाय। अब बनिनिया ने बक्सा उतार के जमीन पर रखवाया। अब जब बक्सा खोला तो उसमें घरघालन लेटा था। अब दोनों बनिया- बनिनिया सन्‍न होकर एक दूसरे की ओर देखते रह गये।

बनिया बोला, कहो घरघालन तुम कैसे? घरघालन बोला कि जहाँ आप वहाँ मैं, -मैं तो आपका नौकर हूँ। खैर बनिया ने घरघालन को भी खिलाया। उसे भगा तो सकते नहीं थे, क्योंकि नाक-कान काटने की शर्त थी। अब सब लोग जब खा पी चुके तो बनिया ने घरघालन के सिर पर बक्शा रखवाया और वे थोड़ी दूर ऐसे ही चलते गये, क्योंकि उनको कहीं जाना तो था नहीं।

जब वे दूसरे कुंआ  के पास पहुँचे तब तक शाम हो चली थी। सो तीनों जने उसी जगह पर रूक गये। अब बनिया ने कहा कि जाओ घरघालन नित्य-कर्म कर आओ। तो घरघालन गया ओर कुंआ के दूसरी ओर छिपकर बैठ गया।

अब एकान्त जानकर बनिया अपनी बनिनिया से बोला कि देख बनिनिया, रात को सोते समय घरघालन को कुंआ की तरफ लिटा देंगे। तुम बीच में लेटना तथा जैसे ही मैं तुम्हें धक्का दूँ, तुम तुरन्त उठ बेठना। फिर दोनों लोग घरघालन को कुंआ में फेंककर यहाँ से चल देंगे। बनिनिया बोली कि ठीक है।

घरघालन छिपकर यह सब सुनता रहा और थोड़ी देर बाद खांस खखारकर सामने आ गया। अब सब लोग खा-पीकर रात होने पर लेट गये। बनिया-बनिनिया दोनों सफर के कारण थके मांदे तो थे ही, तुरन्त सो गये। जब वे सो गये तो घरघालन ने उठकर अपनी जगह बनिनिया को लिटा दिया और उसकी जगह स्वयं चुपचाप लेट गया।

अब आधीरात के समय बनिया चटपट उठा ओर जल्दबाजी में उसने धोखे में अपनी औरत को ही कुंआ में धक्का देकर डाल दिया। अब जहाँ उसकी औरत रात को लेटी थी, उस जगह पहुँचकर बोला, उठ री, चल जल्दी से भाग चले। तो घरघालन उठकर बैठ गया और बोला, चलो, कहा भाग चलना है?

जब बनिया ने देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। वह निराश होकर घरघालन से बोला, तूने मेरा धन बर्बाद किया, धर्म बिगाड़ा और अब मेरी औरत को मुझी से कुंआ में डलवा दिया। लो भाई, अब मैं तुमसे हार गया, तुम मेरे नाक-कान काट लो।

घरघालन बोला, हाँ काटूँगा, तूने मेरे भाई शंकर का यही हाल किया था। अब घरघालन ने  बनिया के नाक-कान काटे और वापस अपने घर भाई के पास आकर प्रेमपूर्वक रहने लगा। किस्सा रहै सो हो गयी।

Source: Bundeli Jhalak 


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