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story of Alha udal | पृथ्वीराज की वीरता से गोरी भी कांप गया, बुंदेलखंड के आल्हा ने उन्हें बंदी बनाया | battle of prithviraj and Alha

जिस पृथ्वीराज की वीरता से भी थर्राया, बुंदेलखंड के आल्हा ने उन्हें बंदी बनाया, जानें कहानी



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महोबा का ऐतिहासिक युद्ध: जब चंदेल शासकों को पृथ्वीराज चौहान ने दी करारी शिकस्त और खुद बना लिए गए बंदी

महोबा का युद्ध 1182 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान तृतीय और चंदेल राजा परमर्दि देव के बीच हुआ था।

मोहम्मद गोरी से तराइन के युद्ध के पहले पृथ्वीराज चौहान का संघर्ष जयचंद व परमर्दिदेव के साथ लगातार चलता रहा था. यह भारतीय राजनीति का वह दौर था, जब राज्य विस्तार के लिए पड़ोसी राजा आपस में ही युद्धरत रहते थे. क्षत्रिय राजा युद्ध को उत्सव के रूप में देखते रहे हैं. क्षत्रियों के लिए कहा जाता था कि- "बारह बरस लो कूकर जीवै और तेरह लौ जिए सियार, बरस अठारह क्षत्री जियें, आगे जीवन को धिक्कार"

महोबा, चंदेलों की राजधानी थी, जो आज के बुंदेलखंड क्षेत्र पर राज करते थे।

यह युद्ध उदल और उनके भाई आल्हा के वीरतापूर्ण युद्ध के लिए भी जाना जाता है, जो राजा परमर्दि के सेनापति थे। इनकी वीरता को लेकर ही "आल्हा-खंड" नामक महाकाव्य लिखा गया। "खट् खट् तेगा बाजन लागे, बोली छपक छपक तलवार, पैदल भिड़ गए पैदल के संग और असवारन (घोड़ा) से असवार"

इतिहासकारों की मानें तो पृथ्वीराज ने कई बार बुंदेलखंड पर हमला किया, लेकिन उन्हें यहां जीत नहीं मिली. आल्हा ऊदल की सेना ने हर बार उन्हें पीछे धकेल दिया. एक युद्ध में भाई ऊदल और उनके चचेरे भाई मलखान की मृत्यु हो गई, जिस पर आल्हा बौखला गए. 

उदल के पिता, जो राजा परमर्दि की सेना में एक सेनापति थे, और युद्ध में शहीद हो गए थे। कहते हैं कि राजा परमर्दि ने उदल को अपने बेटे की तरह पाला था।

महोबा के युद्ध में कन्नौज के जयचंद ने चंदेलों की तरफ से युद्ध लड़ा था।

इस युद्ध में परमर्दि देव, राय पिथौरा (पृथ्वीराज चौहान तृतीय) से हार गए। हालांकि, परमर्दि अपना खोया हुआ राज्य और कलिंजर का किला वापस ले सके, लेकिन 1202-03 ईस्वी में ग़ुरीद सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने चंदेल साम्राज्य का अंत कर दिया. 

वहीं कुछ इतिहासकार बताते हैं अपने भाई उदल की मौत से व्याकुल आल्हा और पृथ्वीराज के बीच अंतिम युद्ध 1182 में वैरागढ़ अकोढ़ी में हुआ था. आल्हा सेना की टुकड़ी लेकर पृथ्वीराज की सेना पर टूट पड़े. इस युद्ध में पृथ्वीराज हार गए और आल्हा ने उन्हें बंदी बना लिया. इतिहासकार बताते हैं कि अपने गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने उन्हें मुक्त कर दिया. इसके बाद आल्हा ने स्वयं बाबा गोरखनाथ के सान्निध्य में संन्यास ग्रहण कर लिया.



 



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