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Jhansi : झाँसी में हो सकेगा अब टीबी मरीजों का अब सटीक इलाज

Jhansi News - बुंदेलखंड के टीबी मरीजाें का अब सटीक इलाज हो सकेगा। रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में टीबी का कल्चर ड्रग सेंसटिविटी टेस्ट (सीडीएसटी) अगस्त से शुरू होने जा रहा है। इससे यह पता चल सकेगा कि टीबी का रोग कितने समय में सही होगा और कौन-कौन सी दवाएं कारगर होंगी। इस जांच से टीबी रोगियों का सटीक उपचार होगा।




मेडिकल कॉलेज के चेस्ट रोग विभाग में हर वर्ष करीब पांच हजार टीबी रोगी आते हैं, जिनमें तीन हजार ड्रग रेजिस्टेंट (जब दवा टीबी जीवाणुओं को नहीं मार पाती है) होते हैं। इन रोगियों का लंबे समय तक उपचार चलता रहता है और दवा बंद होते ही जीवाणु फिर असर दिखाने लगते हैं। ऐसे रोगियों के सटीक उपचार के लिए मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सीडीएसटी शुरू होने जा रहा है। इस समय इसका ट्रायल किया जा रहा है, जिसके काफी अच्छे परिणाम आ रहे हैं। इस जांच से यह पता चलेगा कि रोगी में टीबी का जीवाणु कितना प्रभावशाली है और कौन-कौन सी दवा से रोग का निदान संभव है। साथ ही कितने समय तक कितनी खुराक देनी है। टीबी रोग की पुष्टि के बाद ज्यादातर रोगियों की यह जांच कराई जाएगी, ताकि हरेक का सटीक उपचार कर उन्हें स्वस्थ किया जा सके।

कैसे होते हैं ड्रग रेजिस्टेंट

झांसी। डॉक्टरों ने बताया कि टीबी की दवा बीच में बंद करने की वजह से ड्रग रेजिस्टेंट की स्थिति पैदा होती है। इसकी वजह से जीवाणु पर दवा का असर कम होने लगता है अथवा काम नहीं करती है। ऐसे रोगी पर कौन सी दवा सही तरह से काम करेगी, इसके लिए सीडीएसटी अनिवार्य है, जो अभी तक मेडिकल कॉलेज में नहीं थी।

इस टेस्ट से होती है टीबी की पुष्टि

मेडिकल कॉलेज में चेस्ट रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. मधुर्मय शास्त्री ने बताया कि टीबी के रोगी की पुष्टि के लिए बलगम की सीबी-नाट (कार्टेज बेस्ड न्यूक्लियक एसिड एंपलीफिकेशन टेस्ट) के साथ छाती का एक्स-रे किया जाता है।

वर्जन

अगस्त के अंतिम सप्ताह तक सीडीएसटी शुरू करने का लक्ष्य तय किया है। वर्तमान में सैंपल लेकर ट्रायल भी किया जा रहा है।

- डॉ. एनएस सेंगर, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज

साभार : अमर उजाला 


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