Mahoba News -रक्षाबंधन के दिन राजा परमाल और दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के बीच भीषण युद्ध हुआ था। 24 घंटे चले युद्ध में आल्हा ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को करारी शिकस्त दी थी। जिसके बाद हर वर्ष वीरता की याद में विजयोत्सव के रूप में कजली महोत्सव का आयोजन होता है।
उपेंद्र द्विवेदी, महोबा: उत्तर प्रदेश के महोबा में ऐतिहासिक कजली महोत्सव का आगाज हो गया है। इसका शुभारंभ फीता काटकर एमएलसी, पूर्व सांसद और सदर विधायक के द्वारा किया गया है। भव्य शोभायात्रा में आल्हा , ऊदल , रानी मलहना, राजकुमारी चंद्रावल समेत अन्य झांकियां आकर्षण का केंद्र रही हैं। जुलूस देखने को बुंदेलखंड समेत अन्य प्रदेशों के लोग भी महोत्सव में शामिल होने के लिए पहुंचे हैं। कीरत सागर तट पर लगे मेले में महिलाओं ने बच्चों के साथ जमकर खरीददारी की है।
सन 1182 ईस्वी में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ भुजरियां विसर्जन करने को कीरत सागर जा रही थी। इसी दौरान महोबा को चारों ओर से घेरे दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया। जिसकी सूचना आल्हा ऊदल को मिली तो वीर आल्हा ऊदल ने अपने चचेरे भाई मलखान के साथ साधु वेश में महोबा पहुंचकर कीरत सागर तट पर पृथ्वीराज चौहान की सेना को धूल चटाई थी।
बुंदेलखंड के ऐतिहासिक 843वां कजली महोत्सव की भव्य शोभा यात्रा का शुभारंभ पूर्व सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, एमएलसी जितेंद्र सिंह सेंगर, सदर विधायक राकेश गोस्वामी, हमीरपुर डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष चक्रपाणि त्रिपाठी, नगर पालिका अध्यक्ष डॉ संतोष चौरसिया, जिलाधिकारी मृदुल चौधरी के द्वारा फीता काटकर किया गया ।
ऐतिहासिक शोभायात्रा में महिलाएं सिर पर भुजरियां लेकर शामिल हुई है और शोभायात्रा में हाथी पर सवार होकर आल्हा, घोड़े पर ऊदल और महारानी मलहना का डोला , राजकुमारी चंद्रावल का डोला ,राजा परमाल समेत अन्य झांकियां शामिल हुईं है । इसके साथ ही ओलंपिक पदक विजेता नीरज चोपड़ा ,मनु भास्कर और दिनेश फोगाट की झांकी भी आकर्षण का केंद्र रही है।
शोभा यात्रा का शुभारंभ हवेली दरवाजा से हुआ जो की तहसील चौराहा से छजमनपुरा ,उदल चौक होते हुए कीरत सागर पर पहुंची जहां माताओं बहनों ने भुजरियों का विसर्जन किया है। ऐतिहासिक कजली महोत्सव के भव्य शोभा यात्रा में बुंदेलों ने बढ़-चढ़कर उत्साह के साथ हिस्सा लिया है लोगों की खासी भीड़ देखने को मिली है।
24 घंटे चले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को मिली थी हार
दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान को 24 घंटे चली लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा। बुंदेलों की विजय के बाद राजा परमाल की बेटी चंद्रावल ने सखियों के साथ कीरत सागर में भुजरियों का विसर्जन किया जिसके बाद पूरे राज्य में जश्न मनाया गया और तभी से विजयोत्सव के रूप में हर वर्ष कजली महोत्सव का आयोजन होता चला रहा है। कजली महोत्सव शुरू होते ही बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में बुंदेली लोक विधाओं की झलक देखने को मिलती है।
लंबे समय से राजकीय मेला की दरकार
बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर का कहना है की बुंदेलों की आन-बान और शान के प्रतीक कजली महोत्सव को आज तक राजकीय मेले का दर्जा नहीं मिल सका है । बुंदेलों के द्वारा लगातार कजली मेल को राष्ट्रीय मेला का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही है। जबकि बुंदेलखंड के हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर समेत मध्य प्रदेश के कई जनपदों के हजारों की संख्या में लोग मेले में पहुंचते हैं।
साभार - नवभारत टाइम्स
0 टिप्पणियाँ