गेहूं की खीर, महुआ का मुरक, एक साथ दिखे बुंदेलखंड, मालवा और चंबल के व्यंजन, देखें तस्वीरें

भारत विविधताओं का देश है, यहां क्षेत्रिय बोलियों से लगाकर खान-पान सब थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बदल जाता है. हर क्षेत्र का अपने रहन-सहन खाने-पीने का तरीका अलग होता है. देश का दिल मध्यप्रदेश भी अपने आप में बड़ा खास है क्योंकि यहां पर भी अलग-अलग अंचल हैं. सबकी अपनी खासियत है. जब बात खान पान पर आती है तो इन अंचलों में इलाकों की खास डिसेज हैं.

       

भोपाल में सजे लोकरंग मेले में एक साथ बुंदेलखंड, मालवा, चंबल जैसे अंचलों की स्पेशल डिशेज देखने को मिली. लोकरंग भी करीब 15 से ज्यादा फूड स्टॉल लगाए है, जहां मध्यप्रदेश के कई इलाकों की खास डिशेज देखने को मिली. 

         

विदिशा की गेहूं की खीर का स्टॉल लगाया गया. इस खीर को बनाने में काफी समय लगता है क्योंकि इसे गेहं का छिलका उतारकर बनाया जाता है. जितनी मेहनत इसे बनाने में लगती है उतना ही इसका स्वाद भी है. 


बुंदेली व्यंजन लेकर आई दीप्ति अवस्थी ने थाली का स्टॉल लगाया.  जिसमें खड़ई, मसेला, बरा, चूरमे का लड्डू और कड़ी शामिल थे. यह थाली स्थानीय स्वाद और परंपरा की प्रतीक थी. यहां कोदो का पुलाव आकर्षण का केंद्र रहा. 


मालवा के व्यंजनों का स्टॉल घनश्याम गराडू ने लगाया. सर्दियों में मालवा में गराड़ू की जमकर बिक्री होती है, लोग इसे बेहद ही पसंद करते हैं. घनश्याम ने गराड़ू के चिप्स भी बनाए.
 

चंबल से आई तहसीन खान ने मोटे अनाज और तिल से बने बाजरे के लड्डू और तिल का स्टॉल लगाया. ये व्यंजन सर्दी के मौसम में जोड़ों के दर्द में राहत पहुंचाते हैं. 

मालवा की कई डिशेज जैसे गराड़ू, साबूदाना बड़ा, दाल बाटी. बुंदेलखंडी व्यंजनों तिल का कूचा, महुआ का मुरक और अन्य राज्यों के व्यंजन भी लोकरंग 2025 में देखने को मिले. 

उत्सव में शामिल सभी व्यंजनों ने लोगों के स्वाद को संतुष्ट किया ही साथ ही लोगों को प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का काम भी किया. यहां पहुंचे लोगों ने अलग-अलग इलाकों के व्यंजनों का लुत्फ उठाया. 

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