होली का त्योहार यूं तो पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, पर बुंदेलखंड अंचल में इसे मनाने का अंदाज ही जुदा होता है। बुंदेलखंड के बाशिंदे होली की मस्ती में पूरे महीने भर सराबोर रहते हैं। फाल्गुन महीने की चतुर्दशी को होलिका दहन के बाद होली का पर्व शुरू होता है, जो बुंदेलखंड में पूरे एक माह तक चलता है। होली के दिन न तो शहर में और न ही गांव में कोई भी मस्ती से अछूता रहता है।
गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर टोलियां लोकगीतों के साथ फाग गाती हैं। देसी ढोल, मंजीरे और नगड़िया की थाप पर रंग-गुलाल से सराबोर लोग जब गायन-वादन करते हैं, तो नजारा देखने लायक होता है। इनके इस लोक गायन में धार्मिक कथाओं, कहानियों और सामाजिक संदेशों का भी समावेश रहता है।
होली को खुशियों के पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है। इस समय किसानों की फसलें तैयार हो जाती हैं, जिससे वे दोगुने उत्साह से इसे मनाते हैं। साथ ही दुःख-दर्द से परेशान लोगों को खुश करने के लिए भी यह त्योहार एक उपाय के तौर पर देखा जाता है। अगर, किसी परिवार में किसी सदस्य का देहांत हो गया हो तो गमगीन माहौल में होली गायन करने वाली टोली उनके घर जाती है। और गीत सुनाकर गम के माहौल से उन्हें उबारने का प्रयास करती है। गुलाल लगाकर उन्हें शुभ शगुन दिया जाता है। इस परंपरा के बाद उन घरों में फिर से शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
होली के उमंग और उत्साह से भरे पर्व के बारे में लोकगायक बताते हैं कि यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व लोगों के आपसी बैर-भाव और दुश्मनी को भुलाने का संदेश देता है। नाच-गायन की यह परंपरा सदियों से इस संस्कृति में रची-बसी है। भक्त प्रहलाद के होलिका की गोद से दहन के पश्चात सकुशल बचने की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है।
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