छतरपुर गणेश मंदिर, महोबा रोड पर स्थित सिद्ध गणेश मंदिर की पहचान आज भी आस्था और इतिहास के अद्भुत संगम के रूप में होती है. इस मंदिर की स्थापना करीब 300 साल पहले हुई थी. लोकमान्यता है कि यहां विराजमान भगवान गणेश की 5 फुट लंबी विशाल प्रतिमा को औरंगजेब के शासनकाल में हरिद्वार से चोरी-छिपे छतरपुर लाया गया था.
औरंगजेब के डर से लाई गई थी मूर्ति
साल 1705 में जब मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन था, उस समय देशभर में मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा जा रहा था. इसी दौरान हरिद्वार से हरदेव गोस्वामी (पुरी) और उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने गांव के 10-15 लोगों के साथ मिलकर भगवान गणेश की प्रतिमा को छिपाकर छतरपुर लाने का साहस किया. यह यात्रा बेहद कठिन और खतरों से भरी थी.
हाथी और बैलगाड़ी से पहुंचे छतरपुर
पुरी परिवार के दीपक पुरी बताते हैं कि मूर्ति को हाथी और चार बैलगाड़ियों की मदद से हरिद्वार से छतरपुर लाया गया था. यात्रा में तीन महीने का समय लगा. रास्ते बदल-बदलकर सफर किया गया, ताकि मुगल सैनिकों की नजर में न आएं. प्रतिमा को सफेद कपड़ों में लपेटकर लाया गया और शहर पहुंचकर इसकी स्थापना की गई.
सात पीढ़ियों से पूजा जारी
पुरी परिवार सात पीढ़ियों से भगवान गणेश की इस प्रतिमा की पूजा-अर्चना करता आ रहा है. आज भी हर बुधवार को भगवान को सिंदूर का चोला चढ़ाकर विशेष श्रृंगार किया जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मन्नतें पूरी होती हैं और यही कारण है कि सिद्ध गणेश मंदिर छतरपुर का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र बना हुआ है.
साभार : न्यूज़ 18
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