उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांवों को साफ-सुथरा बनाने का सपना दिखाया गया था, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग नजर आ रही है। गांवों में कचरा प्रबंधन के लिए बनाए गए रिसोर्स रिकवरी सेंटर आज खुद बदहाली का शिकार हैं। कई जगहों पर ये सेंटर बंद पड़े हैं और उन पर ताले लटके हुए हैं। गांवों से निकलने वाला कचरा खुले में फेंका जा रहा है, जिससे गंदगी फैल रही है और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ता जा रहा है।
योजना का मकसद, लेकिन अमल अधूरा
स्वच्छ भारत मिशन के तहत इन सेंटरों को इस उद्देश्य से बनाया गया था कि गांवों का गीला और सूखा कचरा यहां लाया जाए। यहां कचरे का अलग-अलग निस्तारण हो, जैविक कचरे से खाद बनाई जाए और प्लास्टिक व अन्य कचरे का सही तरीके से निपटारा किया जाए। लेकिन हकीकत यह है कि कई सेंटर या तो पूरी तरह बंद हैं या फिर उनका इस्तेमाल भूसा, उपले और पुराने कबाड़ रखने के लिए किया जा रहा है।
गांवों में बढ़ती गंदगी
सेंटरों के बंद रहने का सीधा असर गांवों की सफाई व्यवस्था पर पड़ रहा है। कचरा सड़क किनारे, खाली जमीनों और जंगलों में फेंका जा रहा है। इससे न सिर्फ गांवों की तस्वीर खराब हो रही है, बल्कि बारिश के मौसम में बीमारियों के फैलने की आशंका भी बढ़ जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि जब सफाई के लिए ढांचा मौजूद है, तो उसका इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा।
ग्रामीणों की नाराजगी
मानिकपुर क्षेत्र के एक ग्रामीण पंकज का कहना है कि सरकारी धन से सेंटर तो बना दिया गया, लेकिन आज तक उसका सही उपयोग नहीं हुआ। उनके गांव में बना सेंटर लंबे समय से बंद है और धीरे-धीरे जर्जर होता जा रहा है। न तो कोई अधिकारी देखने आता है और न ही जिम्मेदार लोग इसकी सुध ले रहे हैं।
प्रशासन का पक्ष
इस मामले पर जिला प्रशासन का कहना है कि शिकायतें सामने आई हैं। आरआरसी सेंटरों के संचालन की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की होती है, जिसमें ग्राम प्रधान, सचिव और पंचायत सहायक की भूमिका तय है। प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि समीक्षा बैठकों के जरिए स्थिति की जांच की जा रही है और बंद पड़े सेंटरों को चालू कराने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि आखिर किन कारणों से ये सेंटर काम नहीं कर पा रहे हैं।

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