मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी खड़ी बोली के एक महत्वपूर्ण कवि हैं, उनकी लिखी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था इसलिए महात्म गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की संज्ञा दी थी। ऐसे कवि को याद करते हुए पेश हैं उनके लिखे काव्य से कुछ चुनिंदा पंक्तियां
हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया
पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया
प्रभु ने स्वयं 'पुण्य-भू' कह कर यहाँ पूर्ण अवतार लिया
देवों ने रज सिर पर रक्खी, दैत्यों का हिल गया हिया
लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष
पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया
प्रभु ने स्वयं 'पुण्य-भू' कह कर यहाँ पूर्ण अवतार लिया
देवों ने रज सिर पर रक्खी, दैत्यों का हिल गया हिया
लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से
दोनों ओर प्रेम पलता है।
सखि, पतंग भी जलता है हां! दीपक भी जलता है!
सीस हिलाकर दीपक कहता--
’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’
पर पतंग पड़ कर ही रहता
कितनी विह्वलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
सखि, पतंग भी जलता है हां! दीपक भी जलता है!
सीस हिलाकर दीपक कहता--
’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’
पर पतंग पड़ कर ही रहता
कितनी विह्वलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
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