बुंदेलखंड की खनिज संपदा पत्थर और बालू की बयार डेढ़ दशक से परवान चढ़ी है। दोनों खनिज धरती से आसमान पर पहुंच गए। कुदरत से मिली मुफ्त संपत्ति को करोड़ों का कारोबार बना दिया। इसमें राष्ट्रीय कंपनियों सहित खादी और खाकी से लेकर बाहुबली और माफिया की भी इंट्री हो गई। इन सबके खजाने खनिज से भर रहे हैं।
महोबा की कबरई मंडी के क्रेशर व्यवसायी को गोली मारे जाने और इस घटना के बाद वहां के पुलिस अधीक्षक के निलंबन ने खनिज के धंधे को गर्मा दिया है। न सिर्फ बुंदेलखंड बल्कि पूरे एशिया में कबरई सबसे बड़ी पत्थर मंडी मानी जाती है। इसकी 1979 में दो क्रशरों से शुरुआत हुई थी। 1982 के बाद क्रशर लगाने की होड़ लग गई। आज तीन सौ से भी ज्यादा क्रशर यहां चल रहे हैं, जो आसपास के पहाड़ों को खत्म करने का सबब बन रहे हैं। कबरई के मोचीपुरा और विशाल नगर के पास पहाड़ की चोटी से शुरू हुई खुदाई अब पहाड़ के कई सौ फीट नीचे गहराई तक पहुंच गई है।
यहाँ के व्यापारी दबी जुबान बताते हैं कि कबरई थाना पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे महंगा थाना है। पहाड़ पट्टाधारकों और क्रशर संचालकों की पुलिस के हाथ के नीचे रहना मजबूरी है। पहाड़ या क्रशर में मजदूर या मशीन आपरेटर की मौत होने पर क्रशर संचालकों को पुलिस ही मुकदमेबाजी और भारी-भरकम क्लेम/मुआवजे से बचाती है। यानि मुकदमा दर्ज नहीं करती। मृतक के परिजनों पर हर तरह से दबाव बनाकर समझौते की भूमिका निभाती है। उधर, क्रशर संचालक थाने में चढ़ावा चढ़ाकर मुकदमेबाजी और लाखों के क्लेम देने से बच जाते हैं।
बता दें कि वर्ष 2017-18 से ई-टेंडर व्यवस्था लागू होने के बाद बालू और पत्थर के पट्टों में माफिया और बड़ी कंपनियां कूद पड़ीं। पत्थर (गिट्टी) की सरकारी रॉयल्टी दर मात्र 160 रुपये प्रति घनमीटर है, लेकिन ई-टेंडर में प्रतिस्पर्धा से यह दर 500 रुपये या इससे ज्यादा तक पहुंच जाती है। पूरी प्रक्रिया में करोड़ों की पूंजी खर्च होती है। ऐसे में साधारण या सामान्य व्यापारी पट्टा नहीं ले पाते।
0 टिप्पणियाँ