देश में पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल जितना ज्यादा होता है, उसकी कीमत भी उतनी ही ज्यादा है। अगर कभी यह सस्ता होता भी है, तो भी हमारी जेब पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में कमी के बावजूद हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत कम नहीं होती। ग्राहक पेट्रोल व डीजल के बेस प्राइस यानी एक्स फैक्टरी का लगभग तीन गुना ज्यादा देते हैं। आइए जानते हैं कि इसके पीछे कारण क्या है और इससे सरकारों को कितना फायदा होता है।
यहां जानिए पूरा गणित
दिल्ली में आज एक लीटर पेट्रोल की कीमत 81.06 रुपये है। इधर आपके लिए ये जानना जरूरी है कि इस कीमत में से आधे से ज्यादा पैसा कंपनियों के पास नहीं, बल्कि टैक्स के रूप में केंद्र और राज्य सरकार के पास जाता है। आईओसीएल की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस समय दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल का बेस प्राइस यानी एक्स फैक्ट्री कीमत 25.37 रुपये है, जिसमें अगर फ्रेट (ढुलाई खर्च) जैसे खर्च जोड़ दिए जाएं, तो यह 25.73 रुपये हो जाता है। यानी टैक्स के बिना डीलर्स को पेट्रोल 25.73 रुपये का पड़ता है। अब बात करते हैं टैक्स की। इसमें एक्साइज ड्यूटी के रूप में 32.98 रुपये, डीलर कमीशन 3.64 रुपये और राज्य सरकार का वैट 18.71 रुपये जुड़ता है। इन खर्चों के बाद कुल मिलाकर पेट्रोल की कीमत 81.06 रुपये हो जाती है।
16 नवंबर को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत
बेस प्राइस/एक्स फैक्ट्री कीमत 25.37 रुपये
फ्रेट (ढुलाई खर्च) 0.36 रुपये
एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये
डीलर का कमीशन 3.64 रुपये
VAT (डीलर के कमीशन के साथ) 18.71 रुपये
आपके लिए दाम 81.06 रुपये
16 नवंबर को दिल्ली में डीजल की कीमत
बेस प्राइस/एक्स फैक्ट्री कीमत 25.42 रुपये
फ्रेट (ढुलाई खर्च) 0.33 रुपये
एक्साइज ड्यूटी 31.83 रुपये
डीलर का कमीशन 2.52 रुपये
VAT (डीलर के कमीशन के साथ) 10.36 रुपये
आपके लिए दाम 70.46 रुपये
मोदी सरकार ने कब-कब बढ़ाई ड्यूटी
इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट के बाद लोग राहत की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन लोगों को केंद्र सरकार ने झटका दिया था। सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क और बढ़ा दिया था। इससे पहले साल 2014 में पेट्रोल पर टैक्स 9.48 रुपये प्रति लीटर था और डीजल पर 3.56 रुपये। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक केंद्र सरकार ने इसमें नौ बार इजाफा किया। इन 15 सप्ताह में पेट्रोल पर ड्यूटी 11.77 और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर बढ़ी। इसकी वजह से 2016-17 में सरकार को 2,42,000 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जो 2014-15 में 99,000 करोड़ रुपये थी। बाद में अक्तूबर 2017 में यह दो रुपये कम की गई। हालांकि इसके एक साल बाद ड्यूटी में फिर से 1.50 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया गया। इतना ही नहीं, जुलाई 2019 में यह एक बार फिर दो रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी गई।
कच्चे तेल का बड़ा आयातक है भारत
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा भारत आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए जब भी क्रूड सस्ता होता है, तो भारत को इसका फायदा होता है। तेल सस्ता होने की स्थिति में आयात में कमी नहीं पड़ती लेकिन भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड कम होता है। इससे रुपये को फायदा होता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में मजबूती आती है, जिससे महंगाई भी काबू में आ जाती है। सस्ते कच्चे तेल से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।
उदाहरण से समझिए
भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, ना कि डब्ल्यूटीआई पर। इसलिए भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का असर नहीं पड़ता। अगर ब्रेंट क्रूड की कीमत में एक डॉलर की कमी आती है, तो भारत का आयात बिल करीब 29000 करोड़ डॉलर कम होता है। अगर सरकार को इतनी बचत होती है, तो जाहिर है पेट्रोल-डीजल और अन्य फ्यूल के दाम पर भी इसका असर पड़ता है। यानी पेट्रोल और डीजल सस्ते हो सकते हैं।
इतना पड़ता है पेट्रोल-डीजल पर असर
कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की कमी का सीधा-सीधा मतलब है पेट्रोल जैसे प्रॉडक्ट्स के दाम में 50 पैसे की कमी। वहीं अगर क्रूड के दाम एक डॉलर बढ़ते हैं तो पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे की तेजी आना तय माना जाता है।
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