Banner

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय सांस्कृतिक कार्यक्रम: पूरे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की प्रमुख प्रेरक महारानी लक्ष्मीबाई

वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई एक क्रांतिचेता व्यक्तित्व थीं, साथ ही वे पूरे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की प्रमुख प्रेरक भी थीं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी ने जिस स्वाधीनता की लड़ाई का बिगुल फूंका था, वह बाद में क्रांतिकारियों की चेतना को गहराई से उद्धेलित करती है। ये विचार वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई और स्वाधीन चेतना विषय पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि हिंदुस्तान अकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने व्यक्त किए।



कुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने कहा कि महारानी अपनी प्रकृति में स्वाधीनताप्रिय व्यक्तित्व थीं। स्वतंत्रता के भाव उनमें कूट-कूट कर भरे थे। रानी का मन अंग्रेजी सत्ता को स्वीकार करने को तत्पर नहीं था। डीयू के प्रो. अवनिजेश अवस्थी ने 1857 की क्रांति और उसके प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल नहीं था, बल्कि यह क्रांति एक शुरुआत थी, जिसने जन-जन में स्वाधीनता की प्राप्ति के लिए प्रेरक का कार्य किया। डॉ. गायत्री सिंह ने वर्तमान में महारानी के शैक्षिक और साहित्यिक उपेक्षा पर चिंता प्रकट की। पर्यटन अधिकारी डॉ. चित्रगुप्त ने महारानी लक्ष्मीबाई पर लिखे गए एकांगी इतिहास पर चिंता जताई। लोक साहित्य के मर्मज्ञ पन्नालाल असर, रामस्वरूप ढेंगुला, डॉ. नीरज सिंह ने भी स्वाधीनता आंदोलन के संदर्भ में महारानी लक्ष्मीबाई के योगदान पर प्रकाश डाला। इस दौरान डॉ. अचला पांडेय, डॉ. पुनीत बिसारिया, कानपुर प्रांत के सह कार्यवाह अनिल श्रीवास्तव, प्रो. सुनील काबिया, डॉ. मुन्ना तिवारी, श्रीहरि त्रिपाठी, नवीन चंद पटेल मौजूद रहे।

   


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ