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श्रावण शुक्ल-नवमी पर्व

स्त्रियों का यह पर्व सावन मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को होता है। स्त्रियाँ आज के दिन व्रत रखती हैं और कुठिया (अनाज रखने का मिट्टी से बना एक पात्र) या कुठलिया को गोबर और पोतनी मिट्टी से लीप-पोतकर उसके ऊपर नौ पुतरियाँ बनातीं हैं, उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा करती हैं और पकवान, मिष्ठान्न चढ़ाकर परस्पर कहानी सुनाती हैं। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है।


अकती (अक्षय तृतीया) लोक पर्व

किसी समय एक पण्डित और पण्डितानी एक गाँव में रहते थे। उनके बाल-बच्चे थे। खेती-बारी का धंधा था। पत्नी कुछ चटोरी किस्म की थी और प्रायः पति को मोटे अनाज की रोटी-दाल खेत पर दे आती और घर पर खूब पकवान आदि बनाकर उड़ाती। किसी प्रकार यह बात पण्डित को मालूम हो गई। एक दिन खेत पर जाने की कहकर, वे घर में ही एक कुठिया में छिपकर बैठ गया। उस दिन संयोग से श्रावण शुक्ल नवमी का दिन था। पण्डितानी ने पण्डित को गया समझकर, कुंठिया की पूजा की और छिपकर बनाए गए पकवानों का भोग लगाकर नवमी की विनती की-

’’नमें बाई, नमें बाई नों बिड़ई खेव।

नमें खां रेव औ दसें खां घर जेव।।’’

इसके उत्तर में कुठिया में छिपे पण्डित ने ’हूँ’ कहकर स्वीकृति दी। पण्डितानी खुश होकर पास-पड़ोस की स्त्रियों को ले आई कि मेरी नमें देवी बोलतीं हैं। बस फिर क्या, पण्डित ने बाहर निकल पण्डितानी की पोल खोल दी।

ढठूला ( बुंदेलखंड का पारंपरिक व्यंजन)

एक दिन पण्डित जी ने भी हर पूजा के बहाने खूब पकवान तैयार कराए तथा खेत पर ले जाते हुए पण्डिताइन से बोले- हर की हरयानी, काऊ खाँ न देवी वायनी।’’ बाद में पण्डित-पण्डितानी में परस्पर समझौता हो गया और तब से दोनों मिलकर रहने लगे। यह पर्व पति-पत्नी को परस्पर-मेल से रहने की प्रेरणा देता है।

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