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मामुलिया(श्रावण-भादों में बुन्देलखण्ड में मनाया जाने वाला पर्व)

श्रावण-भादों में सर्वाधिक पर्व मनाए जाते हैं। जिनमें से एक है- लड़कियों का पर्व माहुलिया या मामुलिया, जिसे लड़कियाँ खेल के रूप में मनाती हैं। लड़कियाँ बेरी की कांटेदार डाल के प्रत्येक काँटे पर रंग-बिरंगे अनेकानेक पुष्प, खीरे की फाँकें, जलेबियाँ आदि सजा-संवार कर पिरोती हैं, जिसे ’मामुलिया’ का नाम देती हैं। इस सजी-संवरी हुई डाल को भूमि पर सीधा खड़ा करतीं हैं। उसको घेरकर नाचती, गाती, बजाती है। फिर उसी प्रकार गाती-बजाती, उचकती, कूदती, नाचती हुई गांव में घूमती हैं। 


गीत-

मामुलिया ! मोरी मामुलिया ! कहाँ चली मोरी मामुलिया।

मामुलिया के आए लिवौआ, झमक चलीं मोरी मामुलिया।।

ले आओ-ले आओ चम्पा चमेली के फूल, सजाओ मोरी मामुलिया।

ले आओ-ले आओ घिया, तुरैया के फूल, सजाऔ मोरी मामुलिया।।

जहाँ राजा अजुल जू के बाग, झमक चलीं मोरी मामुलिया।

मामुलिया ! मोरी मामुलिया ! कहाँ चलीं मोरी मामुलिया।।

श्रावण शुक्ल-नवमी पर्व

ये लड़कियाँ गाती-नाचती हुई, गाँव का चक्कर लगाकर, किसी तालाब में ’मामुलिया’ को सिरा देती हैं। फिर ककड़ी-खीरे खाकर अपने-अपने घरों को लौट जाती हैं। इस समय वे पीछे घूमकर नहीं देखतीं क्योंकि उनका विश्वास है कि पीछे घूम कर देखेंगी तो उन्हें भूत लग जाएगा। इसलिए वे यह कहती हुई भागती हैं- ’पन्ना के भूत लगे तीन।’ लड़कियाँ इस खेल- ’मामुलिया’ को वर्ष में कई बार खेलती हैं।

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