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सहकारी समितियों ने दिया मध्यप्रदेश की अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ आधार

प्रदेश में सहकारी आंदोलन की एक सुदृढ़ परंपरा है। वर्ष 1900 से इसके दस्तावेजी प्रमाण है। भारत में 1904 में सीहोरा जिला जबलपुर तथा बड़ोदरा में पहली बार सहकारी बैंकों का गठन हुआ था। सहकारी बैंकों के गठन में मध्यप्रदेश अग्रणी रहा है।  सहकारिता विभाग और उससे सम्बद्ध सभी प्रकार की 50 हजार से अधिक सहकारी समितियों ने अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद व्यवसाय संवर्धन तथा कल्याणकारी योजनाओं से प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ आधार प्रदान किया है।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में सहकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। मध्यप्रदेश कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ विद्यमान वन संपदा, पशुधन और मत्स्य-संसाधनों का सहकार के सिद्धांतों पर उपयोग कर स्वावलंबन की दिशा में निरंतर कार्य जारी है। इन कोशिशों ने, संगठन में ही शक्ति है के सिद्धांत को चरितार्थ करते हुए आत्म-विश्वासी समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

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प्रदेश में कृषि साख संस्थाएँ एवं सहकारी बैंक, किसान भाइयों की सेवा में सदैव तत्पर रही है। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेश को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ। प्रदेश में चार हजार पाँच सौ से अधिक प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाएँ हैं। यह प्रमुख रूप से अल्पावधि कृषि ऋण वितरण, कृषि आदान सामग्री प्रदाय, कृषि उत्पादों के उपार्जन तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में लगी हुई है। वनोपज सहकारी समितियों द्वारा भी लघु वनोपज संग्रहण का कार्य किया जा रहा है। दुग्ध सहकारी समितियाँ श्वेत क्रांति की प्रतीक हैं। बुनकर भाइयों को प्राथमिक बुनकर सहकारी समितियाँ के माध्यम से रोजगार और अपने उत्पाद के विपणन के अवसर मिले हैं। इस तरह सहकारी समितियाँ ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। 

महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने स्व-सहायता समूहों और सहकारिता के माध्यम से नई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब एवं वंचित वर्गों की लाखों महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित होकर आत्म-निर्भर हो रही हैं। इन कर्मठ महिलाओं को 10 हजार से अधिक महिला आजीविका बहु प्रयोजन सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत कर उनके व्यवसायवर्धन और सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

प्रदेश में कृषि को लाभ का धंधा बनाने और किसान की आय दोगुनी करने के लिए किए जा रहे कार्यों और सिंचाई सुविधा के विस्तार से बढ़े उत्पादन के परिणाम स्वरूप भंडारण क्षमता के विस्तार के लिए सहकारी संस्थाओं के जरिए जिलों में गोदामों का निर्माण किया जा रहा है। अब तक 55 गोदाम बन कर तैयार हैं। इनमें से 22 गोदाम एक हजार मीट्रिक टन क्षमता के, 28 गोदाम 200 मीट्रिक टन क्षमता के हैं। बड़वानी जिले के तलुन खुर्द, होशंगाबाद के सेमरी हरचंद, दमोह के ग्राम लाडन बाग, झाबुआ के चारोली पाड़ा और मंडला के ग्राम माना देही में बने एक हजार मीट्रिक टन क्षमता के पाँच गोदामों में ग्रेडिंग सुविधा भी उपलब्ध है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में एक हजार मीट्रिक टन क्षमता के 22 गोदाम बनाए गए हैं। इनमें नीमच के ग्राम सांडिया, सागर के ग्राम भानगढ़ और कंजिया, रायसेन के ग्राम गरुखेड़ी, देबटिया, चुनटिया और झीरखेड़ा, सीहोर के मर्दानपुर, टीकमगढ़ के सरकनपुर व तरीचर कला और छतरपुर के ग्राम कदारी में बने गोदाम शामिल हैं। सतना के मझगंवा, राजगढ़ के ग्राम पिपलहे और जीरापुर तथा बड़वानी के तलुन खुर्द, सिवनी के नागा बाबा घनसोर तथा मंडला के हीरापुर में एक हजार मीट्रिक टन क्षमता के गोदाम बनाए गए हैं। सिंगरौली के कजनी, बैरसिया भोपाल के बसई, कटनी के बहोरीबन्द और घेरेश्वर (डीमरखे़ड़ा) और राजगढ़ के बोड़ा में एक हजार मीट्रिक टन क्षमता के गोदाम के साथ सड़कें भी बनकर तैयार हैं।

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इसी क्रम में दो सौ मीट्रिक टन क्षमता के 28 गोदाम बनाए गए हैं। इनमें सागर के बलेहा और  खैराना, नरसिंहपुर के नांदनेर, कामती और इमलिया, छिंदवाड़ा के छिंदी कामथ, रायसेन के साँची और धार जिले के छोटा जमुनिया, दिग्ठान आहू, रेशमगारा और बागड़ी में गोदाम बनाए गए हैं। झाबुआ जिले के सारंगी, पारा, गोपालपुरा, मोरतड़, खंडवा जिले के लहारपुर, दीवाल, सिंगोट, सेंधवाल, पोखरकला, खरगोन जिले के डालका, टेमला, लिख्खीजला, बरूड़, कुमारखेड़ा, धूलकोट और रतलाम के रिंगानिया में भी 200 मीट्रिक टन क्षमता के गोदाम बनकर तैयार हैं। इन 55 गोदामों के निर्माण पर 31 करोड़ 12 लाख रुपये की लागत आई है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में  114 गोदामों का निर्माण भी आरंभ किया जा रहा है। 

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प्रदेश में विकसित हो रही यह भंडारण क्षमता 'एक जिला एक उत्पाद योजना' की सफलता में भी सहायक होगी। प्रदेश में पैदा हो रहे फल, सब्जी, अनाज के व्यवस्थित भंडारण ग्रेडिंग और देश-विदेश के बाजारों में इनकी आपूर्ति के लिए यह गोदाम आवश्यक अधो-संरचना उपलब्ध कराएंगे। 

प्रदेश में कृषक उत्पादक संगठनों को भी सहकारी क्षेत्र में पंजीकृत करने का प्रावधान किया गया है। अब तक 22 कृषक उत्पादक संगठन पंजीकृत किये जा चुके हैं।

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