Banner

किसकी जीत का नमूना है मोदी सरकार का ओबीसी संसोधन बिल

देश में ओबीसी आरक्षण को लेकर संसद से सड़क तक घमासान मचा हुआ है। नेताओं और पार्टियों का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। पहले केंद्र पर आरोप लगा कि वह ओबीसी विरोधी है लेकिन इस बीच सरकार ने ऐसा दाव खेला कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। मोदी सरकार का ओबीसी संशोधन बिल लोक सभा में पास होने के साथ ही विरोध के सारे सुर थम गए। ऐसा भी कम ही देखने मिलता है जब किसी मुद्दे पर पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा नजर आया। हालांकि कांग्रेस की तरफ से यूपी व अन्य राज्यों के चुनावों का हवाला देकर रंग में भंग करने की कोशिश भी की गई। इस पूरे प्रकरण में कई राज्य सरकारों के वज़ीर-ए-आला भी सुर्ख़ियों में बने हुए हैं, मसलन मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गंम्भीर आरोप लगाए हैं। कमलनाथ ने मंगलवार को एक कू पोस्ट के जरिये अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने अपनी सरकार में आरक्षण से जुड़े तथ्यों का हवाला देने हुए लिखा कि "मेरी सरकार द्वारा ओबीसी वर्ग के उत्थान के लिये दिनांक 8 मार्च 2019 को ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया गया था।


इसको चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में कुछ याचिकाएं लगी।…" 

https://www.kooapp.com/koo/officeofknath/c65e5cab-4810-4034-9172-d219fe92e019

उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि शिवराज सरकार ने आरक्षण के पक्ष में कोई ठोस कदम नहीं उठाये। सोशल मीडिया पर भी उनकी ये बात जंगल में आग की तरह फ़ैल रही है। प्रश्न उठ रहे हैं कि SC ST या OBC के हितों के लिए कौन सही है। क्या मध्य प्रदेश की जनता के साथ उनके मामा ही बेरुखी से पेश आ रहे हैं या कमलनाथ पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े हितैषी होते हुए भी लाचारी के आड़े छिपे हुए हैं। फिर इस सम्पूर्ण प्रकरण में सोशल मीडिया के बेलगाम घोड़े की महत्वपूर्ण भूमिका भी देखने को मिली है, जिसने 40 सालों से लंबित पड़े मामले को कुछ ही रोज में परिणाम के समीप पहुंचा दिया है।  

उधर बिहार में तेजस्वी यादव भी केंद्र के साथ, नितीश सरकार को इस मुद्दे पर घेरने में लगे हुए हैं। उन्होंने इसके पहले नीट छात्रों का मुद्दा उठाकर कुछ आंकड़े पेश किये थे जिसके तहत पिछले पांच सालों में 11 हजार से अधिक छात्रों को आरक्षण के लाभ से वंचित रखने की बात कही गई है। उधर बिहार के मुख्यमंत्री ने भी राज्य सभा ने मुद्दा उठाया। मामले को तूल पकड़ता देख सरकार ने ऐसा तुरुप का पत्ता फेंका कि सारा विपक्ष एक ही बार में नतमस्तक हो गया। इस संसोधन की ख़ास बात यह है कि इसके बाद राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अपनी जरूरतों के हिसाब से ओबीसी की लिस्ट तैयार कर सकेंगे। 

ओबीसी आरक्षण की मांग पिछले लम्बे समय से चल रही थी। ऐसे में महाराष्ट्र में मराठा गुजरात में पटेल और हरियाणा में जाटों की मांग भी पूरी हो सकेगी। उधर मोदी सरकार ने साफ कर दिया कि अब अंडरग्रैजुएट और पोस्टग्रैजुएट के सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में अखिल भारतीय कोटा योजना के तहत ओबीसी वर्ग के 27% और ईडब्ल्यूएस वर्ग के 10% छात्रों को आरक्षण मिलेगा। आप इसे सामाजिक न्याय की जीत या संघर्ष की विजय बोल सकते हैं। लेकिन इसके बाद भी कुछ प्रश्न हमेशा के लिए प्रश्न ही रह जाएंगे, कि क्या आरक्षण से वंचित वर्गों के साथ यह हर प्रकार से न्याय होगा, या उनका प्रश्न उठाना जायज नहीं माना जाएगा, या फिर हमारा देश कभी आरक्षण के जहर से मुक्त ही नहीं हो पाएगा।

आपका Bundelkhand Troopel टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ