चित्रकूट। गरीब किसानों का सहारा बनेगी कोदो कुटकी की खेती


दीनदयाल शोध संस्थान अपने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए प्रोत्साहन कार्य कर रहा है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। ग्राम बंदरकोल में विभिन्न किस्मों के मोटे अनाजों की फसलों का प्रदर्शन तैयार कराया गया है। कम समय, कम खर्चा, कम पानी व पोषक तत्वों से परिपूर्ण यह फसलें गरीब किसानों के लिए प्रेरणा का केंद्र बनीं है।

वैश्विक सुविधा पर्यावरण परियोजना का काम देख रहे कृषि विशेषज्ञ सत्यम चौरिहा ने बताया कि यह फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। यह फसलें सितंबर में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान्न फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान्न का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। इस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो- कुटकी, सावां व कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्नों के रूप में प्राप्त होती है।

रविवार को डीआरआई के संगठन सचिव अभय महाजन व कोषाध्यक्ष वसंत पंडित ने बंदरकोल गांव में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा तैयार किये गए मोटे अनाज के उत्पादन को देखकर किसानोें व विशेषज्ञों से जानकारी ली। बताया कि यह रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो कुटकी उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए रामबाण है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है।



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