चित्रकूट क्षेत्र में रहने वाली आदिवासी महिलाओं एवं पुरुषों के लिए परंपरागत जड़ी बूटियों के द्वारा निर्मित लोकल उत्पादों को बनाने की विधि, लेवलिंग एवं विपणन विषय पर प्रशिक्षण कार्यशाला 5 एवं 6 मई को दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम में आयोजित की जाएगी, जिसमें स्वयं सहायता समूह की आदिवासी महिलाओं को रोजगार स्थापित करने के लिए विशेष रूप से लाटा, जन्म घुट्टी और काजल के मूल्य संवर्धन व विपणन करने की विधि पर जोर दिया जाएगा।
परियोजना प्रभारी डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी आरोग्यधाम के वैज्ञानिक ने बताया, परंपरागत खानपान की चीजें आज के दौर में समाप्त होती जा रही हैं, लेकिन यह लाटा, जन्म घुट्टी और काजल आज के परिवेश में बहुत अच्छे हैं।
लाटा का उपयोग करने से हमारा शरीर निरोगी रहता है। इसके साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। पेट साफ रहता है, शरीर का विकास भी ठीक प्रकार से होता है, जिसका उपयोग बूढ़े, नौजवान एवं बच्चे भी कर सकते हैं, क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन एवं मिनरल्स पाए जाते हैं।
रोगों से लड़ने में मिलती है मदद
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि इसी प्रकार से जन्म घुट्टी का प्रयोग 6 माह तक के बच्चों में किया जाता है, जो कि बच्चों में रोगों से लड़ने में सहायता करती है। पेट साफ रहता है, पाचन ठीक से होता है और शरीर भी मजबूत होता है। इसके साथ ही काजल भी जो आंखों में प्रयोग होता है, वह भी देसी जड़ी बूटियों से बनाया जाता है। जो कि हमारी आंखों को रोग से बचाता है और आंखें भी सुंदर होती है।
साभार- भास्कर
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