बांदा जिले में ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग के कोटि तीर्थ सरोवर की दीवार से ऐतिहासिक धरोहर मिली है। शिवलिंग, गणेश, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी समेत अनेक देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां मलबे से निकली हैं। पुरातत्व विभाग मूर्तियों की सफाई कराकर इन्हें सहेजने में जुटा है।
सामाजिक संस्था कालिंजर शोध संस्थान के निदेशक अरविंद छिरौलिया के अनुसार, मूर्तियां व पत्थरों पर बनीं कलाकृतियां नवीं और दसवीं शताब्दी की हैं। कालिंजर दुर्ग में कई छोटे-बड़े सरोवर और तालाब हैं। उन्हीं में से एक कोटि तीर्थ सरोवर है।
इस सरोवर के आसपास बड़ी-बड़ी प्राचीन दीवारें हैं। हाल ही में तालाब के उत्तरी दिशा में पत्थर महल मस्जिद के तरफ की दीवार कमजोर होने के कारण ढह गई। दीवार का मलबा कोटि तीर्थ सरोवर में गिर गया। दुर्ग की देखरेख करने वाले पुरातत्व विभाग के अफसरों ने मलबा हटाना शुरू किया।
शिवलिंग को छोड़कर अधिकतर मूर्तियां खंडित
इस दौरान उसमें प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां निकल आईं। कुछ पत्थरों पर देवी-देवताओं की नक्काशी है। इसमें भगवान विष्णु, गणेश, लक्ष्मी जी, पार्वती जी की प्रसन्न मुद्रा वाली भी मूर्तियां हैं। शिवलिंग को छोड़कर अधिकतर मूर्तियां खंडित हैं।
मूर्तियों को मलबे से निकालकर एक्साइड पुरातत्व विभाग के कर्मी वहीं दीवार के किनारे रख रहे हैं। अभी नंबरिंग का कार्य नहीं हुआ हैं। कर्मियों का कहना है कि गोट्टी तालाब के पास राजा अमान सिंह का महल है। पहले निकली मूर्तियां उसी में रखी गई हैं। इन्हें भी उसी में रखा जाएगा।
कालिंजर दुर्ग के इतिहास के जानकार समाजसेवी विवेक शुक्ला ने बताया 1986 में दुर्ग तक जाने के लिए रोड बनाई जा रही थी। तब भी खोदाई के दौरान इसी तरह से मूर्तियां निकलीं थी। उन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर राजा अमान सिंह महल में नंबर डालकर रखवा दिया था।
दुर्ग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि तब 282 केएफ नंबर से 305 तक की मूर्तियां और तोप के गोले निकले थे। उनको पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया था। इसके अलावा 1960 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कालिंजर दुर्ग को अपने संरक्षण में लिया था।
कालिंजर काफी प्राचीन दुर्ग है यहां पर गुप्त काल से लेकर बुंदेलों तक का शासन रहा है। यहां पर पूर्व में भी निर्माण कार्य के दौरान इस तरह की मूर्तियां मिलती रही हैं। इस बार भी तीर्थ कोटि सरोवर के निर्माण के दौरान मूर्तियां जैसी मिली हैं। इन्हें मूर्तियां नहीं मंदिरों के खंड कहेंगे, इन्हें संग्रहालय में रिकॉर्डिंग करके रखेंगे। जो काम की सामग्री है उसे अलग कर लिया गया है। प्रतिमाओं के जो खंड मिले हैं, वह नौवीं व दसवीं शताब्दी के अलावा इसके बाद के भी हैं। सब खंड एक प्रकार के नहीं हैं, अलग-अलग तरह के हैं। -जुल्फीकार अली, अधीक्षक, पुरातत्व
तीर्थ सरोवर कालिंजर दुर्ग का सबसे सुंदर और पौराणिक स्थल है। पूरा दुर्ग भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है। सरोवर की दीवार से मूर्तियां और कलाकृतियां सहेजकर इसका निर्माण दोबारा कराया जा रहा है। सरोवर के चारों तरफ की प्राचीन दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां व कलाकृतियां हैं।
यहां आने वाले पर्यटकों का इनके प्रति आकर्षण रहता है। कालिंजर इतिहास से जुड़े अरविंद छिरौलिहा ने बताया, भारत पर राज करने वाला छठवां शासक औरंगजेब आलमगीर के नाम से जाना जाता था। 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य उसका शासन रहा, इसे मूर्ति भंजक कहा जाता था। वह हिंदू धर्म की मूर्तियों को खंडित करवा देते थे।
1812 से वर्ष 1947 के बीच ब्रिटिश शासन के समय पर हिंदू धर्म से जुड़ी स्मृतियों को भी नष्ट करने का काम किया जाता था। कोर्ट तीर्थ सरोवर काफी प्राचीन है, लेकिन इसके चारों तरफ की दीवारें अंग्रेजों द्वारा बनाई गईं थीं। तब दीवार के पीछे यह मूर्तियां भी दबा दी गईं थीं। इससे कि सनातन धर्म और हिंदू धर्म जागृत ना हो सके।
कालिंजर दुर्ग नीलकंठ मंदिर के राजपुरोहित पंडित शंकर प्रताप मिश्रा ने बताया कि कोटि तीर्थ सरोवर में सभी तीर्थों का जल मिला है। ऐसे में इस सरोवर के जल से यहीं पर विराजमान भगवान नीलकंठ का जलाभिषेक करने से एक हजार गायों के दान का पुण्य मिलता है। खास तौर से कार्तिक पूर्णिमा पर जलाभिषेक अधिक फलदायी माना जाता है।
कालिंजर दुर्ग के इतिहास के जानकार समाजसेवी विवेक शुक्ला ने बताया 1986 में दुर्ग तक जाने के लिए रोड बनाई जा रही थी। तब भी खोदाई के दौरान इसी तरह से मूर्तियां निकली थीँ, जिन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर राजा अमान सिंह महल में नंबर डालकर रखवा दिया था। दुर्ग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि तब मूर्तियां और तोप के गोले निकले थे। 1960 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कालिंजर दुर्ग को अपने संरक्षण में लिया था।
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