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पंचकल्याणक महोत्सव:जो देखने में नहीं आता , लेकिन होता है, वही चमत्कार है: मुनिश्री

 शहर की नंदीश्वर कॉलोनी स्थित आदिनाथ धाम के पंचकल्याणक महोत्सव के तीसरे दिन तप कल्याणक मनाया गया। सुबह 6 बजे से मंगलाष्टक, रक्षामंत्र, श्रीजी का अभिषेक एवं शांति धारा एवं नित्यम पूजा हुई। 8.30 बजे निर्यापक मुनिश्री सुधा सागर महाराज मंच पर विराजमान हुए। प्रवचन के दौरान मुनिश्री ने कहा कि स्यादवाद धर्म नहीं होता, एक दृष्टिकोण है। स्यादवाद द्रव नहीं है, अनेकांत धर्म है। स्यादवाद धर्म की अभिव्यक्ति करने का साधन है। मुनिश्री ने कहा कि जो देखने में नहीं आता और होता है, वह चमत्कार है।



जैसे भगवान का कोई अभिषेक नहीं कर रहा है, हम अभिषेक की अनुभूति कर रहे हैं, यही चमत्कार है। कार्यक्रम के मीडिया संयोजक प्रदीप जैन बम्होरी ने बताया कि दोपहर 12 बजे से तप कल्याणक का कार्यक्रम शुरू हुआ। 32 हजार मुकुबद्र राजा नाभिराय के दरबार में भेंट प्रदान करते हैं। सेनापति मुकुबद्र राजा की भेंट राजा के दरबार में रखवा देते हैं। सभी राजा अपने-अपने राज्य एवं अपना परिचय देते हुए भेंट करते हैं। कुछ राजा-रानी भक्ति कर दरबार से वापस चले जाते हैं।

महाराज के दरबार में अयोध्या की प्रजा परेशान होकर आती है और कहती है, महाराजा हमारी जीविका अभी तक कल्पवृक्ष के माध्यम से चलती थी। हम जो भी इच्छा करते थे, वह पूरी हो जाती थी। महाराज अब कल्पवृक्ष समाप्त हो रहे हैं, हम लोग भूखे मर जाएंगे, हम लोग कैसे अपना जीवन चला पाएंगे, कुछ उपाय करें महाराजा। महाराज ने सौधर्मेंद्र से विचार विमर्श किया, प्रजा की समस्या का समाधान बताया। महाराज ने कहा जीवन में परिवर्तन आते रहते हैं, उतार-चढ़ाव का नियम संसार का है। सुनो तुम्हें उतावला होने की जरूरत नहीं है।

उसी समय से वर्ण व्यवस्था शुरू हो जाती है, उसी समय से खेती करना हल चलाना शिक्षा देना आदि शुरू हो जाता है। तभी महाराज की दोनों बेटियां पहुंचती हैं ब्राह्मी, सुंदरी और कहती हैं पिताजी आपने जाे अक्षर विद्या का ज्ञान दिया मैंने इस पुस्तक में विधिवत तैयार करके देवनागरी विद्या छंद अलंकार आदि समाहित किए हैं। सुंदरी ने कहा पिताजी आपके द्वारा दी गई विद्या से मैंने जोड़, घटाना, गुणा, भाग व नाप आदि की विद्या को व्यवस्थित करके इस पुस्तक को तैयार किया है। जब ब्रह्मी एवं सुंदरी की शादी की बात आती है तो दोनों बहनें कहती हैं कि अपने पिता का सिर दूसरे के चरणों में नहीं झुकने दूंगी, मैं आजीवन ब्रह्मचारी व्रत का पालन करूंगी।

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