सागर जिले की सीमाएं सात जिलों से लगती हैं। इनमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटें हैं। इनमें से नौ सीटें अभी बीजेपी के पास हैं। खड़गे के दौरे के बाद यहां समीकरण बदल सकते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे 22 अगस्त को सागर में करेंगे जनसभा, बुंदेलखंड के 22 फीसदी SC वोटर्स को साधने की कोशिश
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। चुनाव तैयारियों के लिहाज से भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेता अलग-अलग वर्गों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कड़ी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 22 अगस्त को सागर आने वाले हैं। वे यहां विशाल जनसभा को संबोधित करेंगे।
दरअसल, मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार के कारण यह वर्ग भाजपा से खफा है। ऐसे में कांग्रेस एससी और एसटी वाेटर के सहारे 150 सीटें जीतने की काेशिश में है। बुंदेलखंड क्षेत्र की बात करें तो यहां 22% एससी वाेटर हैं। इन्हें साधकर कांग्रेस 2023 के चुनाव में बड़ी बढ़त ले सकती है। बुंदेलखंड के 22 फीसदी एससी मतदाताओं को लामबंद करने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सागर आ रहे हैं।
खास बात ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा के पहले 12 अगस्त काे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सागर में ही रहेंगे। वे यहां संत रविदास मंदिर का भूमिपूजन करेंगे। ऐसे में बुंदेलखंड की राजनीति माेदी बनाम खड़गे की होगी। माना जा रहा है कि इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा और 22 फीसदी दलित मतदाता कांग्रेस की ओर लामबंद होंगे। इससे पहले खड़गे 13 अगस्त को सागर आने वाले थे। हालांकि, उनका दौरा अब 22 अगस्त को शिफ्ट कर दिया गया है। मध्य प्रदेश में मल्लिकार्जुन खड़गे का यह पहला चुनावी दौरा होगा।
सागर जिले की सीमाएं सात जिलों से लगती हैं। इनमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटें हैं। इनमें से नौ सीटें अभी बीजेपी के पास हैं। वहीं कांग्रेस के पास एक सीट है। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ये 10 सीटें काफी महत्वपूर्ण हैं। इसे देखते हुए ही खड़गे का कार्यक्रम तय किया गया है। सागर जिले से अशोकनगर, नरसिंहपुर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, विदिशा और रायसेन की सीमाएं लगती हैं। खड़गे की सभा के जरिए कांग्रेस की कोशिश इन जिलों की 36 सीटों को भी साधने की है।
मध्य प्रदेश में 16.5% एससी वाेटर हैं जो किसी भी राजनीति दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। 230 विधानसभा सीटों में से 35 इस वर्ग के लिए आरक्षित है। वहीं, 22 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं और 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी थी, जबकि कांग्रेस ने जबरदस्त तरीके से इन सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी अपने खिसके हुए राजनीतिक जनाधार को दोबारा से जोड़ने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रही है। ऐसे में अब कांग्रेस ने भी आक्रामक चुनावी रणनीति तैयार की है।
साभार: हम समवेत
0 टिप्पणियाँ