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Bundelkhand News: चुनावों में बादलों से आते हैं नेता, न वादे पूरे होते हैं, न बरसता है पानी

बुंदेलखंड (Bundelkhand) की यही कहानी, चुनावों में बादलों से आते हैं नेता, न वादे पूरे होते हैं, न बरसता है पानी

Bundelkhand News


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के तहत 17 नवंबर को मतदान होगा. इससे पहले जानिए बुंदेलखंड की स्थिति और कैसे आज भी पानी को तरस रहे हैं यहां के कई जिले.

बुंदेलखंड (Bundelkhand) का नाम जैसे ही आता है, वैसे ही सूखे की तस्वीरें सामने आने लगती हैं. बुंदेलखंड का नाम कानों में पड़ते ही धूप में मीलों-मील पानी की तलाश में भटकती महिलाओं की तस्वीरें मन-मस्तिष्क में घूमने लगती हैं. प्यास और पलायन यहां की नियति बन गए हैं. चुनाव आते हैं, वादे किये जाते हैं, सरकारें बनती और गिरती हैं, लेकिन बुंदेलखंड की न तस्वीर बदलती है और न यहां रहने वालों की किस्मत… मध्यप्रदेश में 17 नवंबर 2023 को राज्य की सभी 230 सीटों के लिए एक साथ मतदान होगा. टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, सागर, दामोह और निवाड़ी जिले इसी बुंदेलखंड का हिस्सा हैं. चलिए जानते हैं बुंदेलखंड की पूरी कहानी.

आंकड़ों की बात करें तो काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करने वालों में टीकमगढ़ जिले के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. बदलते कैलेंडर के साथ क्या टीकमगढ़ की तस्वीर में कुछ बदलाव आया?  जानते हैं इस स्पेशल रिपोर्ट में…

आज हम 21वीं सदी में हैं, लेकिन जैसे ही आप टीकमगढ़ (District of Bundelkhand) जिले के गांवों में पहुंचते हैं तो यह 18वीं-19वीं की याद दिलाते हैं. जिले के दो गांव बनगांय और कौड़िया में Zee News की टीम भी गई. आज जहां देश चंद्रमा पर चंद्रयान उतार रहा है और बुलेट ट्रेन पर सफर करने के सपने देख रहा है, वहीं इन गांवों के लोग सदियों पीछे छूट गए हैं.

गांवों में ज्यादातर बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे ही दिखाई देते हैं. यहां के पुरुष मजदूरी करने या जॉब की तलाश में ग्वालियर, झांसी और दिल्ली जैसे शहरों में चले गए हैं. महिलाओं ने हमारे संवाददाता को बताया कि यहां न तो पानी है न एक साल से बिजली ही आई है. पीने के पानी के लिए जो जद्दोजहद यहां की महिलाओं को करनी पड़ती है, वह एवरेस्ट चढ़ने जैसी है. उन्हें सुबह-सुबह 3-4 किलोमीटर चलकर या साइकिल से पीने का पानी लेने जाना पड़ता है.

सुनीता ने दिखाई हकीकत

गांव की एक महिला सुनीता ने हमारी टीम को यहां की पूरी हकीकत दिखाई. 6 साल पहले वह गांव में बहू बनकर आई थी. छोटे बच्चे को गोद में लेकर सुनीता ने गांव के वो घर दिखाए, जिन पर ताले लग चुके हैं. कई ताले तो इतने पुराने हैं कि उन पर जंग लग चुका है. यहां के लोग काम की तलाश में दूसरी जगह गए और फिर वापस आए ही नहीं. जो कभी-कभी वापस आते भी हैं, वह जल्द ही वापस चले जाते हैं. सुनीता का कहना है कि इस साल दिवाली के बाद वह भी अपने पति के साथ दिल्ली चली जाएगी, क्योंकि यहां उनके और उनके बच्चे के लिए कुछ नहीं है.

ये हीरा पानी लाने में घिस रहा

गांव की 6-7 साल की एक बच्ची स्कूल ड्रेस पहने नजर आई, लेकिन उसके हाथ में पानी का मटका था. पूछने पर उसने अपना नाम हीरा बताया. हीरा अक्सर ही स्कूल जाने से पहले और स्कूल से आने के बाद भी गांव के एक हैंडपंप पर पानी लेने जाती है. पानी भरकर यह छोटी सी बच्ची वहां छोटी पहाड़ी पर बने अपने घर पर लेकर जाती है. वह कई चक्कर लगाकर पानी भरती है, ताकि घर की पानी की जरूरत पूरी हो सके. एक मासूम बच्ची जिसे खेलने और पढ़ने में समय लगाना चाहिए, वह पानी के चक्कर में घिस रही है. इतना ही नहीं, हीरा इतनी मेहनत से जो पानी भर लाती है, वह पीने लायक नहीं है. बल्कि उससे कपड़े और बर्तन धोने का काम किया जाता है. पीने के पानी के लिए दूर जाना पड़ता है और यह काम इसके माता-पिता करते हैं.

शौचालय बना स्टोररूम

यहां के कौड़िया गांव की आदिवासी बस्ती की महिलाएं भी मटके और बाल्टी लेकर 1 किलोमीटर दूर हैंडपंप से पानी भरने जाती हैं. इनमें से कई महिलाएं तो काफी वृद्ध भी हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांव में कुछ आधे बने पक्के मकान नजर आते हैं, लेकिन उन पर भी ताला लगा है. लोग ईंट की दीवार खड़ी करे काम-काज के लिए बाहर चले गए. महिलाओं ने बताया कि यहां सिर्फ एक हैंडपंप है, जिस पर कभी-कभी ही पानी आता है. गर्मियों में हैंडपंप भी सूख जाता है. गांव में पानी पीने के लिए नहीं है, शौचालय में कहां से आएगा. यही वजह है कि बी.एन लौंगसोर शौचालय को स्टोर रूम बना लिया है.

बुंदेलखंड (Bundelkhand) की बदहाली के लिए जिम्मेदार ढूंढ़ने निकलेंगे तो न जाने कितने गड़े मुर्दे उखड़ेंगे. वादे तमाम होते हैं, लेकिन उन वादों को पूरा करने की इच्छाशक्ति कहीं नजर नहीं आती. अब तो लगता है बुंदेलखंड के लोगों ने भी शायद बादलों की ही तरह नेताओं से भी उम्मीद छोड़ दी है.

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