हमीरपुर-महोबा लोकसभा सीट पर अभी तक किसी भी महिला को नहीं मिला टिकट, क्या इस बार टूटेगा सिलसिला
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे सभी दल अपनी तैयारी को और तेज कर रहे हैं। खासकर यूपी में राजनीतिक दल अभी से पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुट गए हैं।
हमीरपुर:
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र में आजादी के बाद आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने महिला उम्मीदवार पर दांव नहीं लगाया है। संसदीय सीट के चुनाव में ज्यादातर बाहुबलियों और धनकुबेर लोगों को ही उम्मीदवार बनाया गया है। महिला बिल में जबरदस्त आरक्षण दिए जाने के बाद भी आगामी लोकसभा चुनाव में यहां की सीट के लिए आधी आबादी को राजनीतिक दलों से मौका मिलने के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे हैं।
बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, तिंदवारी संसदीय सीट पर आम चुनावों में भाजपा समेत अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें ऐसे उम्मीदवारों पर रहती हैं, जो धनकुबेर होने के साथ ही चुनाव जीतने में दमखम रखता हो। कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा सहित अन्य दलों ने बाहुबलियों और धनकुबेर लोगों को ही चुनावी महासमर में उतारा है। वर्ष 1952 में आजाद भारत के पहले आम चुनाव कराए गए थे, जिसमें कांग्रेस ने यहां की संसदीय सीट के लिए एमएल द्विवेदी पर दांव लगाया था।
ये लगातार 1962 तक सांसद रहे थे। 1967 में भारतीय जनसंघ पार्टी देश में पहली बार अस्तित्व में आई थी। इस पार्टी ने गो रक्षा आन्दोलन के कारण कई सीटें जीती थीं। आम चुनाव में यहां के संसदीय क्षेत्र में जनसंघ पार्टी ने किसी भी महिला को उम्मीदवार नहीं बनाया था। जनसंघ ने एक संत स्वामी पर दांव लगाया था। स्वामी भारी मतों से न सिर्फ चुनाव जीतें थे, बल्कि कांग्रेस के मजबूत गढ़ को भी इन्होंने ध्वस्त कर दिया था।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में नौ बार धनकुबेरों पर लगाया था दांव
संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए आम चुनावों पर नजर डाले तो वर्ष 1952 से लेकर 2014 तक यहां की सीट से पुरुष ही चुनाव लड़कर जीते हैं। इनमें भाजपा ने नौ बार लोकसभा चुनाव में बाहुबलियों और धनकुबेरों पर ही दांव लगाया है, जबकि सपा ने तीन बार एक ही बाहुबली और धनकुबेर को चुनावी समर में उतारा था। सपा को एक बार यहां की सीट पर कब्जा करने का जनादेश भी मिला था। वर्ष 1991 के आम चुनाव में भाजपा ने झांसी के पंडित विश्वनाथ शर्मा को यहां की सीट पर उम्मीदवार बनाया था। इनकी गिनती धनकुबेरों में रही है। उरई के रहने वाले गंगाचरण राजपूत 1989 में जनता दल के टिकट से सांसद बने थे। इन्हें 1996 में भाजपा ने भी यहां की सीट से उम्मीदवार बनाया था। ये लगातार दो बार सांसद रहे हैं।
बसपा ने संसदीय सीट के लिए बाहुबलियों पर लगाई थी प्रतिष्ठा
2004 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के राजनारायण बुधौलिया यहां की सीट पर जीते थे। इनकी गिनती बाहुबलियों में होती रही है। वहीं, बसपा ने भी एक बड़े बाहुबली को यहां की लोकसभा सीट के लिए चुनाव मैदान में उतारा था, जो मौजूदा में उम्रकैद की सजा जेल में काट रहे हैं। वर्ष 1999 में अशोक सिंह चंदेल बसपा के टिकट से पहली मर्तबा सांसद बने थे। इनके आपराधिक इतिहास की लम्बी फेहरिस्त है। वारंट जारी होने के बाद फरारी हालत में इन्होंने संसद में शपथ ली थी। बाद में कई साल तक ये जेल में रहे। आजादी के बाद से अब तक यहां की संसदीय सीट पर सिर्फ पुरुषों का ही दबदबा कायम रहा। वह भी ज्यादातर धनकुबेर और बाहुबलियों ने लोकसभा में पहुंचकर अपनी किस्मत चमकाई है।
विधानसभा के चुनाव में प्रमुख दल महिलाओं पर लगाते हैं दांव
हमीरपुर जिले में विधानसभा चुनाव में ही प्रमुख दल आधी आबादी पर दांव लगाते हैं। पिछले साल विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने राठ विधानसभा की सुरक्षित सीट के लिए मनीषा अनुरागी पर दांव लगाया था, जबकि अखिलेश यादव ने भी इस सीट पर एक महिला को चुनाव मैदान में उतारा था। हालांकि, भाजपा की लहर में मनीषा अनुरागी भारी मतों से कमल खिलाकर विधानसभा पहुंची थीं। इससे पहले भी भाजपा ने इसी महिला को चुनाव मैदान में उतारा था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर की सदर विधानसभा सीट पर साध्वीं निरंजन ज्योति को पहली उम्मीदवार बनाया था। वह विधायक भी बनी थीं, लेकिन बाद में साध्वीं लोकसभा के चुनाव में फतेहपुर सीट से सांसद बन गई थीं।
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